मनवा रहता है भरमाया




कोरी चादर दाग लगाए

फिरता उसपर यूँ इतराया

मैली गठरी ढोता जैसे

मनवा रहता है भरमाया।


काम जकड़ता बेड़ी बनकर

माया जड़ती उसपर ताले

अन्धेकूप में भटके बुद्धि

मक्खी मारे बैठे ठाले।

पिंजरे में बंदी हंस कभी

ज्ञान-मोती नहीं चुग पाया

मैली..........................।।


कैसी प्यास जगी है मन में

नदिया-सागर लगते झूठे

खाली गगरी लिए हाथ में

फिरता जग में तूठे-तूठे

भवसागर की चमक-दमक में

सत्य कहीं जा बिसरा आया

मैली------------------------।।


फीकी पड़ती चमक चाँदनी

छँटने लगे भ्रम के जाले

हंसा पी की पुकार लगाए

जिह्वा पड़ते रहते छाले

वह आत्मबोध की ज्योति जली

यह भू पतिता कंचुक काया।

मैली--------------------------।।


अभिलाषा चौहान 


टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 01 दिसंबर 2022 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह!सखी ,बहुत खूबसूरत सृजन ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आध्‍यात्‍मिक चेतना से सराबोर कविता...वाह अभिलाषा जी...क्‍या खूब लिखा है कि ''काम जकड़ता बेड़ी बनकर

    माया जड़ती उसपर ताले

    अन्धेकूप में भटके बुद्धि

    मक्खी मारे बैठे ठाले।

    पिंजरे में बंदी हंस कभी

    ज्ञान-मोती नहीं चुग पाया''..अप्रतिम

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी सुंदर प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई। हृदय से आभार सादर

    जवाब देंहटाएं

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