जाल



सुरेश जी सिर पकड़ कर बैठे थे।हाथ में कुछ कागज थे, उन्हें बार-बार देखते और फिर गहरी सांस भरते।माथे पर पसीना छलक रहा था।पति को इस तरह बैठे देख रागिनी घबरा उठी।


"क्या हुआ जी!जबसे डाकिया आया है,आप यूँ ही बैठे रह गए।कोई परेशानी वाली बात है।बताओ तो मुझे।"


सुरेश जी पत्थर का बुत बने बैठे थे। रागिनी ने उन्हें पकड़ कर हिलाया,पर वे कुछ न बोले तो रागिनी ने वे कागज उनके हाथ से लेकर पढ़ना शुरू किया और उसके बाद वो भी सिर पकड़ कर धम्म से उनके पास रखी कुर्सी पर गिर गई। दोनों को जैसे साँप सूँघ गया था।


सुरेश जी सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारी थे और रागिनी एक शिक्षिका,उसकी सेवानिवृत्ती में एक वर्ष बाकी था।उनकी एक ही संतान थी,जो शादी के कई वर्ष बाद हुई थी। ईश्वर ने देर से ही सही,उनकी झोली में एक पुत्र डाल दिया था।आज उनका बेटा साफ्टवेयर इंजीनियर था।अभी दो महीने पहले ही बड़ी धूमधाम से उसकी शादी की थी।अपने सारे अरमान पूरे किए थे।जो भी शादी में आया ,वो गद-गद होकर गया था।बेटा भी उन्हें श्रवण कुमार जैसा मिला था और ईश्वर की कृपा से बहू भी परी जैसी आई थी।जिसने देखा उसने सराहा।उनके भाग्य को लेकर लोग अक्सर यही कहते थे कि "जीवन हो तो सुरेश-रागिनी जैसा और बेटा हो तो रोहित जैसा।"

फिर ऐसा क्या हुआ कि आज दोनों पत्थर का बुत बन गए थे?पता नहीं कितना समय ऐसे ही बीत गया।आखिर में रागिनी ने हिम्मत दिखाई और उठकर एक गिलास पानी लाई। पति को हिलाया और पानी का गिलास आगे बढ़ा दिया। दोनों की आँखें मिली और सुरेश के सब्र का बाँध टूट गया-"ये कैसे हो गया रागिनी!हमने कभी किसी के साथ बुरा नहीं किया।आखिर हमें किस बात की सजा मिल रही है।अब क्या होगा?हमारा बुढ़ापा ही बिगड़ गया।"

रागिनी चुप थी क्या कहती!एक-एक शब्द सच था पति का।पर 'भाग्य के लेखे को कौन पढ़ पाया है।सुख और दुख कब स्थायी रहे हैं।'अब तक जीवन में सुख ही सुख थे,पर ऐसे कष्ट की कल्पना तो उन्होंने सपने में भी नहीं की थी। रागिनी बस इतना ही बोल पायी-"हिम्मत रखो। 

"हिम्मत कैसे रखूँ हिम्मत! रास्ता तो दिखे कोई!अब ऐसे दिन आएंगे ,इसकी कल्पना तो सपने में भी नहीं थी।हमसे कहां ग़लती हो गई?" दोनों एक ही झटके में अस्सी साल के बूढ़े लग रहे थे।किसी तरह खुद को सम्हालते हुए अंदर आए।आदमी को सबसे ज्यादा डर किससे लगता है 'कि कहीं उसकी मान-प्रतिष्ठा मिट्टी में नहीं मिल जाए'आज उनकी मान-प्रतिष्ठा ही दाँव पर लग गई थी।अंदर आकर रागिनी रोहित के कमरे में वे कागज लेकर गई। रोहित की शक्ल उससे देखी नहीं जा रही थी।चेहरे पर उदासी,बढ़ी हुई दाढ़ी,आँखों में वीरानापन। रागिनी ने उसके पास जाकर सिर पर हाथ फेरा-"खुद को यूँ क्यों बर्बाद कर रहा है बेटा!जब हम तेरे साथ है,हम लड़ेंगे और जीतेंगे,चिंता मत कर।"वह कुछ नहीं बोला।

"आफिस नहीं जाना क्या तुझे  !एक हफ्ता हो गया घर में पड़े-पड़े।बाहर निकल, दोस्तों से मिल और ये अपनी दशा सुधार।हम तो तेरा ही मुख देख कर जीते हैं,तू ठीक रहेगा तो सब ठीक हो जाएगा।"

"आपको ऐसा लगता है माँ!कैसे ठीक होगा?हमारी लाईफ अब कभी पहले जैसी नहीं होगी। मैं क्या करूं समझ में नहीं आ रहा।" रागिनी अपनी आँखों के तारे को इस तरह टूटा हुआ देख दुखी हो उठी।उसने वे कागज छुपा लिए। उसका कलेजा फट रहा था, वह उस मनहूस घड़ी को याद कर रही थी,जिसने उसके हँसते-खेलते परिवार की खुशियां लील ली थी। फिर भी हिम्मत कर उसने रोहित का डाँटा-"मेरा बेटा होकर ऐसी बातें कर रहा है।अब तू बिस्तर छोड़ पंद्रह मिनट में राजा बेटा बनकर बाहर आ।फिर सोचते हैं क्या करना है? "रागिनी ने तय कर लिया था कि वह अपने परिवार को इस तरह टूटने नहीं देगी।वह मेज पर खाना लगाने लगी।किसी तरह पति और बेटे को समझाकर खाना खिलाया।दो-चार इधर- उधर की बातें की,शायद माहौल हल्का हो जाए,पर कुछ नहीं हुआ।खाना खाकर वे दोनों अपने-अपने कमरे में चले गए। रागिनी बर्तन समेट किचन साफ करने लगी,फिर सोफे पर ही लेट गई।उसे याद आने लगे वो पल।वे सब लोग जेठ जी के यहाँ गए थे।जेठानी जी के मायके में चचेरी बहन की लड़की की शादी थी।जेठ -जेठानी जिद करके उन तीनों को भी ले गए। रोहित अभी 26 का ही हुआ था।सुंदर,गठीला,गोरे रंग का रोहित सभी के ध्यानाकर्षण का केन्द्र था। वहीं पर प्रिया को पहली बार देखा।सुंदर, मृदुभाषिणी।बड़ी अच्छी लगी पर मन में कहीं भी ये विचार नहीं था कि वह उसकी बहू बने। वहीं पर उसके माता-पिता से परिचय हुआ।वे जेठानी की चचेरी बहन के अच्छे परिचित थे।शादी सम्पन्न हुई।सब अपने- अपने ठिकानों पर लौट आए। कुछ दिन बाद प्रिया के माता- पिता को अपने यहाँ देख वह चौंक गई।पता चला वे रिश्ते की बात करने आए थे। रोहित अभी शादी के लिए तैयार नहीं था।पर वे लोग तो पीछे ही पड़ गए। जेठानी जी से भी सिफारिश करवाई।प्रिया एमबीए कर चुकी थी ऐसा उन्होंने बताया। आखिर में वह मनहूस घड़ी आई,जब उन्होंने इस रिश्ते के लिए हाँ कर दी।प्रिया भी रोहित को पसंद आ गई थी।

जानकारी में रिश्ता हो रहा था,ये सबसे अच्छी बात थी।पर "इंसान कब गिरगिट सा रंग बदल लें ,पता ही नहीं चलता"।दहेज तो चाहिए नहीं था।सब कुछ था ईश्वर की कृपा से।शादी हुई और खूब धूमधाम से हुई। रोहित और प्रिया की जोड़ी बड़ी सुंदर लग रही थी।पर पता नहीं था "इस सुंदरता के पीछे काला दुर्भाग्य उनके घर में प्रवेश कर रहा था।"शादी के हफ्ते भर बाद दोनों हनीमून पर कुल्लु- मनाली चले गए।सब बढ़िया चल रहा था।उनके बेटी नहीं थी,प्रिया के आने से बेटी की कमी भी पूरी हो गई।कोई रोक-टोक नहीं,कोई पर्दादारी नहीं।सब साथ उठते-बैठते, हँसते-बोलते।फिर पगफेरे का दिन आया।शादी के इक्कीसवें दिन प्रिया के पिता,चाचा,भाई उसे विदा कराने आ पहुँचे।प्रिया चली गई।तय हुआ कि एक हफ्ते बाद रोहित उसे लेने जाएगा। रोहित गया और खाली हाथ लौट आया।पता चला वह अभी पंद्रह दिन और वहीं रहेगी।उसकी सहेली की शादी है।उसके बाद रोहित ने कई बार उससे फोन पर बात की ,पर उसके जबाव आड़े- टेढे ही थे।समझ नहीं आ रहा था कि ऐसा क्या हुआ? फिर एक दिन उसने रोहित से कह दिया कि उसे डाइवोर्स चाहिए। रोहित ने बहुत पूछा लेकिन उसने कोई संतोषजनक जबाव नहीं दिया।उसने स्वयं फोन किया उसके माता-पिता को।

वे बोले-हमारा वकील बात करेगा।उसने जेठानी को सारी बात बताई।उन्होंने भी कोशिश की पर वे अपनी बात पर अटल थे कि उनकी बेटी अब वहाँ नहीं रहेगी।समझ नहीं आ रहा था क्या करें और क्या न करें और आज ये कोर्ट का नोटिस जिसमें उनपर दहेज एक्ट लगा दिया गया था और ससुर पर  छेड़-छाड़ का आरोप।सब समझ से परे था।साठ लाख रूपये देने थे और सामान लौटाना था।जब सामान लिया ही नहीं तो लौटाएं कैसे?कागज़ों में सामान की फेहरिस्त और गहनों की लिस्ट भी थी। लेकिन सारे गहने तो उसने ही बहू के लिए बड़े चाव से बनवाए थे।उसका माथा ठनका।वह उठकर रोहित के कमरे में गई।प्रिया की अलमारी खोल कर देखने लगी। 

रोहित बोला-क्या ढूँढ रही हो माँ?इसकी चाबी पता है तुझे! हां ड्राअर में पड़ी हुई है।पर बताओ तो। रागिनी ने झट से लाकर खोला-और उसकी आँखें फटी रह गई। गहनों के खाली डिब्बे मुँह चिढ़ा रहे थे।उसने रोहित की ओर देखा" बेटा !हम लुट गए"और उसने वे कागजात रोहित की ओर बढ़ा दिए।देख इन लोगों का विश्वासघात!पर तू मत घबराना।हम टूटेंगे नहीं। रोहित भौंचक्का सा वे कागज देख रहा था।कितना चाहने लगा था प्रिया को,माँ-पापा भी कैसे हाथोंहाथ रखते थे उसे और उसने पापा की इज्जत पर भी कीचड़ उछाल दिया।"अब क्या होगा माँ?हम तो इस जाल में उलझ गए।आपका बुढ़ापा,मेरा करियर सब बर्बाद हो गया माँ! पापा कहाँ हैं? उन्हें अकेला मत छोड़िए,वे यह सह नहीं पाएंगे।"

रोहित माँ के साथ पापा के कमरे में गया।वे लेटे हुए थे।"आओ बेटा!तुम चिंता मत करो! मैंने वकील से बात की है,वे मेरे घनिष्ठ मित्र हैं।कह रहे थे कि कोर्ट के बाहर ही ले-दे कर बात सुलट जाए तो अच्छा है। नहीं तो मामला लंबा खिंचेगा।"वैसे उनकी पुलिस महकमे में अच्छी जान-पहचान है।कह रहे थे ये सब आजकल आम हो गया है।कुछ लोग लूटने की मंशा से ही रिश्ता करते हैं।अब जाल में फँसे हैं तो रास्ता तो ढूँढना ही होगा।"पापा क्या मैं एक बार प्रिया से मिल लूँ!शायद उसे समझा पाऊँ।

"मिल लो और मिलना तो मैं भी चाहता हूँ देखना चाहता हूँ उस बैगेरत की आँखों में! जिसने मेरी सामाजिक प्रतिष्ठा को दाँव पर लगा दिया है और तेरी जिन्दगी को जहन्नुम बना दिया"!

उसके बाद रोहित ने प्रिया को कई बार फोन किया। लेकिन उसने फोन नहीं उठाया।एक आखिरी कोशिश और करता हूँ!ये सोचते हुए उसने आज फिर फोन लगाया उसने फोन उठाया तो रोहित ने उससे पूछा कि "क्या वह उससे मिलने आ सकता है?"

"तुम किस अधिकार से मुझसे मिलना चाहते हो ?जब मुझे तुम्हारे साथ रहना ही नहीं।"

"वो सब ठीक है,नहीं रहना था तो शादी क्यों की?और मेरे पापा पर यह इल्जाम क्यों लगाया?"उधर से ठहाका गूँजा" केस को स्ट्रांग करने के लिए!अब तुम भुगतो"आगे से फोन मत करना ,तुमसे और तुम्हारी फैमिली से मेरा कोई वास्ता नहीं।आगे जो भी बात होगी हमारा वकील करेगा।"

रोहित सुन्न सा उसकी बातें सुन रहा था।ऐसे भी लोग हैं दुनिया में!!अपने सुख के लिए दूसरों के जीवन में जहर घोलते हैं।फिर उसने खुद को संयत किया।आखिर अपने माता-पिता का सहारा भी तो बनना था।

हो गई बात बेटा!पापा ने पूछा फिर खुद ही बोल उठे-वे लोग बड़े शातिर हैं बेटा!बस इतना याद रखो कि तुम्हें उनके लिए अपनी जिंदगी बर्बाद नहीं करनी है।अब जाल में फँसे हैं तो निकलने के सारे रास्ते ढूँढने हैं।

जहाँ कभी खुशियाँ बसेरा करती थीं ,वहाँ तनाव और दुख ने बसेरा डाल लिया था। रोहित की हँसी गायब थी। लेकिन रागिनी पुरजोर कोशिश कर रही थी कि उसके परिवार को इस संकट से निपटने की शक्ति मिले।वह पति और बेटे को साहस से आगे बढ़ने की बात कहती रहती।

प्रिया और उसके परिवार के लोग बहुत ही बदमाश थे। उन्होंने कोर्ट के बाहर मामला रफा-दफा करने की बात को ठुकरा दिया था।मामला कोर्ट में चला गया और अब उन्हें कोर्ट के चक्कर काटने पड़ रहे थे।


(सत्य घटना पर आधारित)


अभिलाषा चौहान 





टिप्पणियाँ

  1. मर्म स्पर्शी कहानी

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  2. आज के समय की कटु सच्चाई

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  3. सामाजिक तानेबाने के अंतर्द्वंद , छल , पीड़ा , भावनाओं के साथ खिलवाड़,माता पिता के अविचल व्यक्तित्व को व्यक्त करती हुई कहानी ।🙏🙏

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