मानव जनित प्रदूषण
यह तपती धरा पर्यावरणीय असंतुलन का भोग रही है दंश। मानव ने किया प्राकृतिक संसाधनों का अत्यधिक दोहन। उजाड़ दिए हरे-भरे अरण्य खड़े कर दिए कंक्रीट के जंगल अनियोजित औद्योगिकीकरण बढ़ा रहा प्रदूषण जल-थल-वायु हुए प्रदूषित। जहरीला धुआं उगलते कल-कारखाने वाहन बढ़ाते वायु-प्रदूषण। गंदे नालों से दूषित नदियां और सागर बदल गया ऋतुचक्र। आसमां से बरसती आग पिघल रहें हैं हिमखण्ड। प्लास्टिक का बढ़ता प्रयोग धरती का घोंट रहा दम बंजर होती धरती बढ़ रहा असंतुलन। वैज्ञानिक संसाधनों का अनुचित प्रयोग प्रदूषण का बना वाहक। पड़ रहा असर स्वास्थ्य पर धरा के जीवन पर छाया है घोर संकट। अभिलाषा चौहान स्वरचित मौलिक