सूना जीवन

खाली-खाली मन का कोना,
ढूंढे कोई खोया खिलौना।
पलकें बिछाए बैठे बिछौना,
कब आएगा साथी सलोना।

जीवन में कोई अपना हो न,
जीवन लगता बड़ा ही सूना।
दिल भी सूना ,मन भी सूना,
खाली-खाली मन का कोना।

जीवन लगता मरू के जैसे,
प्यास बुझेगी इसकी कैसे।
दूर-दूर तक दिखे न कोई,
जल की बूंद मिलेगी कैसे।

तरस-तरस के मन रह जाए,
बिन बरसे बादल उड़ जाए।
झोली मेरी रह जाए खाली ,
कैसे बहारें जीवन में आए।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार मई 05 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत सुंदर मार्मिक रचना सखी ,सादर नमस्कार

    जवाब देंहटाएं
  3. मर्मस्पर्शी सृजन अभिलाषा जा।

    जवाब देंहटाएं
  4. मरूभूमि पर आंसुओं की बरसात ....
    जो भी हो बनी रहे आस ।

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत ही हृदयस्पर्शी सृजन...

    जवाब देंहटाएं

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