छाया से घिरा जीवन
अनंत छायाओं
घिरा ये जीवन
कितने झेलता उतार-चढ़ाव
कभी दुख की छाया लगाती
सुख के सूर्य को लगाती ग्रहण
कभी आशंकाओं की बदली
आशाओं की किरण को
करती विलुप्त
कभी अनिष्ट,अनहोनी
बनकर छाया
आनंद के चंद्र को लगाते ग्रहण।
सुख-दुख की छाया में
पलता ये जीवन है चक्रव्यूह
जिसमें हर कोई है अभिमन्यु
भेदना चाहता है इसे
हटाने को दुख सर्वदा के लिए।
पर ये छायाएं करती अनवरत पीछा,
जिनसे घिरा जीवन
जीवन और मृत्यु के बीच सदा
लड़ता है अपनी जंग
कभी हारता कभी जीतता
कभी पड़ता ग्रहों के फेर में
करता मुक्ति के उपाय तमाम।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
घिरा ये जीवन
कितने झेलता उतार-चढ़ाव
कभी दुख की छाया लगाती
सुख के सूर्य को लगाती ग्रहण
कभी आशंकाओं की बदली
आशाओं की किरण को
करती विलुप्त
कभी अनिष्ट,अनहोनी
बनकर छाया
आनंद के चंद्र को लगाते ग्रहण।
सुख-दुख की छाया में
पलता ये जीवन है चक्रव्यूह
जिसमें हर कोई है अभिमन्यु
भेदना चाहता है इसे
हटाने को दुख सर्वदा के लिए।
पर ये छायाएं करती अनवरत पीछा,
जिनसे घिरा जीवन
जीवन और मृत्यु के बीच सदा
लड़ता है अपनी जंग
कभी हारता कभी जीतता
कभी पड़ता ग्रहों के फेर में
करता मुक्ति के उपाय तमाम।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
बहुत सुंदर सखी ,सादर
जवाब देंहटाएंजो गिरता है, उठ सकता है
जवाब देंहटाएंपड़ा हुआ, बस, मर सकता है.
बस यही सत्य है आदरणीय, जिंदगी हर कदम एक नई जंग है,सहृदय आभार
हटाएंजिंदगी हर कदम एक नई जंग हैं... बहुत सुंदर भाव जिदंगी के लिए, अभिलाषा दी।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी
हटाएंसहृदय आभार यशोदा जी
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी
जवाब देंहटाएंजीवन दर्शन का सुंदर चित्रण
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
हटाएंबेहतरीन रचना प्रिय सखी
जवाब देंहटाएंसादर
बहुत सुंदर रचना दी👌
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
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