निष्ठा वीर सपूतों की
मातृभूमि के वीर सपूत,
थी निष्ठा उसकी सेवा की।
बांध कफ़न वे निकल पड़े,
पीछे मुड़कर फिर देखा नहीं।
खायी थी कसम मरमिटने की,
मुखमंडल पर था तेज बड़ा।
भुजाओं में थी शक्ति बड़ी,
शत्रु का दिल भी धड़क उठा।
मृत्यु उनकी थी सहचरी,
निष्ठा में थी न कोई कमी।
मृत्यु को भी थे जीत चले,
पीठ कभी भी दिखाई नहीं।
हंसकर फांसी पर झूले,
थे वतन के वो परवाने।
धधक रही थी आजादी की,
शमा के थे वो बस दीवाने।
मां-बाप वतन ही था उनका,
आंखों में था बस सपना एक।
लहराए तिरंगा अपना फिर,
सबका था लक्ष्य यही बस नेक।
पूरी निष्ठा और समर्पण से
आजादी की लड़ी लड़ाई थी
वह शुभ-दिन जीवन में आया
कसमें जिसकी उन्होंंने खाई थी
अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक
वाह बेहतरीन प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
हटाएंमाँ भारती के वीर सपूतों की महिमा गाती भावपूर्ण रचना | सचमुच वीरों की निष्ठा पर किसे संदेह होगा ? सर्वस्व बलिदान ही उनके जीवन का परम लक्ष्य होता है |हार्दिक शुभकामनायें और बधाई |
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार प्रिय रेणु बहन
हटाएंबेहतरीन प्रस्तुलि। देश के वीरों का गुणगान करती सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंवाह!!सखी ,लाजवाब रचना!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी
हटाएंमातृभूमि के वीर सपूत,
जवाब देंहटाएंथी निष्ठा उसकी सेवा की।
बांध कफ़न वे निकल पड़े,
पीछे मुड़कर फिर देखा नहीं।
बहुत शानदार रचना .... सखी ,वीर सपूतो को सत सत नमन
बहुत ही लाजवाब
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सहृदय आभार सखी
हटाएंसहृदय आभार प्रिय श्वेता जी
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