खुशियों का गलीचा

गलीचा
बिछा है आज।
पड़ने वाले हैं कदम
किसी खास के।
खुल गए हैं द्वार
वर्षों की आस के।
खुशियां छलकती हैं
बजती है शहनाई।
सजे तोरणद्वार
दीपमाला झिलमिलाई।
बेटी के विवाह की शुभ घड़ी है,
वर्षों की आस दुल्हन बनी है।
सपनों और अरमानों का
सजा है सुन्दर गलीचा।
बेटी के सुखद जीवन की
आस सजी है।
भावनाओं की लहरें मचल
उठीं हैं।
माता-पिता देखो,
फूले नहीं समाते।
वर के रूप में राम जी आते हैं।
पलकों का देखो,
बिछा दिया है गलीचा।
प्रेम से हरपल को है सींचा।
बेटी खुश रहे
बस कामना यही है।
खुशियों की आज
बरसात हो रही है।
अतिथियों की मान-मनुहार
हो रही है।
भावनाओं और खुशियों
का बिछा है गलीचा।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (25 -05-2019) को "वक्त" (चर्चा अंक- 3346) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ….
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह बहुत ही सुन्दर शब्द चित्र ! हर दृश्य साकार हो उठा है जैसे !

    जवाब देंहटाएं
  3. भावनाओं और खुशियों
    का बिछा है गलीचा।
    जी सखी ये दिन बहुत ख़ुशी का होता है जिस दिन इस गलीचे को बिछाया जाता है | भावपूर्ण रचना |

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार रेणु बहन,वास्तव में यह दिन
      भावनाओं से युक्त होता है।सादर

      हटाएं
  4. बहुत ही सुन्दर... लाजवाब...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  5. सहृदय आभार यशोदा जी 🙏🌷

    जवाब देंहटाएं

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