अनमोल गलीचा


वो गलीचा
जिसे देख
यादों की बारात
चली आई।
छूते ही जिसे
उस मां की याद आई।
जिसने बड़े प्रेम से
बनाया था गलीचा।
जिसके ताने-बाने में
उसका प्रेम बसा था।
आस बंधी थी,
उमंग बुनी थी।
नरम उंगलियों का
एहसास बसा था।
कितने जतन से उसने
बनाया गलीचा।
सपनों का
उसमें चित्र सजा था।
बड़ा ही कीमती
है वो गलीचा।
मां के स्पर्श
गंध बसी थी।
चुन-चुन कर
उसने भाव भरे थे।
जब भी छुओ
स्नेह निर्झर बहे थे।
हाथ से छुआ
उसका स्पर्श याद आया।
मन में भावनाओं का
सागर लहराया।
बड़ा ही अनमोल है
मेरे लिए ये गलीचा।
मां की ममता का
है जो नतीजा।
देखा-भाला
उसे संभाला।
फिर बड़े जतन से
रख दिया गलीचा।
बड़ा ही अनमोल है
मेरे लिए ये गलीचा।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुन्दर भाव अभिव्यक्ति

    जवाब देंहटाएं
  2. ममतामयी माँ की बेटी भी माँ के गलीचे की तरह अपनी मधुर स्मृतियों को इतनी सुन्दरता से बुने तो क्या आश्चर्य !

    जवाब देंहटाएं
  3. य अभिलाषा बहन -- सच कहा आदरणीय गोपेश जी ने | शब्दों में रंगीले सजीले गलीचे के बहाने माँ के स्नेह की स्मृतियों को बसी की आत्मीयता से पिरोया गया है | हाथ से बनी चीज में माँ का प्यार छिपा होता है जो एक स्पर्श से ही गहरी अनुभूति करवाता है सुंदर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक शुभकामनायें

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार रेणु बहन,स्नेहसिक्त प्रतिक्रिया के
      लिए,आपने सच कहा है मां जो भी चीज बनाती
      है, उसमें ममता ही झलकती है।

      हटाएं
  4. वाह!!सखी ,बहुत ही भावपूर्ण रचना!

    जवाब देंहटाएं
  5. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" सोमवार 27 मई 2019 को साझा की गई है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  6. ताने-बाने में
    उसका प्रेम बसा था..बहुत बढ़िया।

    जवाब देंहटाएं
  7. माने के स्पर्श से कोमल और कौन सा ग़लीचा है ?
    बहुत सुंदर

    जवाब देंहटाएं
  8. जिसके ताने-बाने में
    उसका प्रेम बसा था।
    आस बंधी थी,
    उमंग बुनी थी।
    बहुत सुंदर ...सखी

    जवाब देंहटाएं
  9. बड़ा ही अनमोल है
    मेरे लिए ये गलीचा।
    मां की ममता का
    है जो नतीजा।
    वाकई बहुत अनमोल गलीचा है...बहुत सुन्दर , भावपूर्ण रचना...
    वाह!!!!

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

सवैया छंद प्रवाह

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद- कृष्ण प्रेम