टाले-टाले कहीं टली

अनहोनी होकर रहती है टाले-टाले कहीं टली आशंकाएँ जाल बिछातीं खुशियाँ जातीं सदा छली। जीवन सुख-दुख के पाटों में पिसता है घुन के जैसा कठपुतली सा नाच नचाता काल बना यम है ऐसा पटरी पर आते-आते ही गाड़ी फिर से उतर चली आशंकाएँ जाल बिछातीं खुशियाँ जातीं सदा छली।। तप्त रेत सा लगता जीवन संकट नित झुलसाते हैं मृगमरीचिका में उलझे कब सुधा ढूँढ कर लाते हैं गर्म हवा फिर तोड़ हौसले निर्मम सी हो आज चली आशंकाएँ जाल बिछातीं खुशियाँ जातीं सदा छली।। शीतल ठंडी छाँव मिले कब सपना मन में पलता है आग उगलता दिनकर देखो अँधकार मन छलता है हार गया जो रणभूमि में भटके नित ही गली-गली आशंकाएँ जाल बिछातीं खुशियाँ जातीं सदा छली।। अभिलाषा चौहान