कल्याण (लघुकथा)

 

रज्जो बर्तन घिस रही थी तभी पड़ोस वाली कमली दौड़ती हुई आई-"ओ रज्जो!सुन जल्दी से काम निपटा ले,स्कूल वाली बहनजी बुला रही हैं, कोई बड़ी मैडम जी आई हैं, औरतों का कल्याण होगा उनकी बातों को सुन कर।"


अरे काहे का कल्याण,अभी तो दो घर और पड़े हैं,तेरे निपट गए।


अरे नहीं, मालकिन भी जा रहीं हैं,सो उन्होंने कहा-आकर कर लेना।चल अब जल्दी कर।


कमली उसके साथ काम कर वाने लगी।तभी रज्जो की मालकिन भी आकर बोली- अरे रज्जो जा ,मैं भी आ रहीं हूँ। ऐसी जगह जाने से औरतों को अपने अधिकारों और योजनाओं का पता चलता है। सरकार महिला सशक्तीकरण पर जोर दे रही है,जिससे औरतों को भी मुख्य धारा में लाया जा सके।ऐसी बातें तुम जैसी स्त्रियों में जागरूकता लातीं हैं,उनका कल्याण करती हैं।


रज्जो और कमली मुँह बाये सुन रहीं थीं।उनके पल्ले कुछ भी न पड़ा।बेचारी घरों में काम करके अपना और अपने बच्चों का पेट पाल रहीं थीं। दोनों के मर्द अव्वल दर्जे के शराबी और नकारा इंसान थे,मजदूरी पर कभी जाते कभी नशे में किसी गड्ढे या सड़क पर पड़े रहते।


मालकिन के जोर देने पर दोनों पहुंच गई सभा में -मैड़म जी ने बड़ी-बड़ी बातें की। औरतों को अन्याय के खिलाफ खड़े होने को एकजुट होने को कहा। औरतों के कल्याण की बड़ी- बड़ी बातें बोलीं।
सुनने वाली अधिकतर औरतें रज्जो और कमली जैसी हीं थी।उनके पल्ले कुछ पड़ा या नहीं,सब नाश्ता-पानी करके खुश हो गई।फिर रैली निकाली गई।मैडम जी बोलीं -जैसे मैं बोलूं ,वैसे ही बोलना।सबके लिए ये बातें नई थी।उनके चेहरे पर उत्सुकता और आवाज में जोश था।मैडम ने नारा लगाया-"बंद करो ये अत्याचार,मत समझो हमको लाचार। नारी शक्ति का जमाना है,हम पाएंगे अब अधिकार।"


सभी औरतें बड़ी मगन थी।आवाज में आवाज मिला रहीं थीं। दारु के अड्डे पर मर्द जमा थे,वे ये सब देखकर आगबबूला हो रहे थे।मैडम जी ने वहीं खड़े होकर कहा- "दारुबाजी नहीं चलेगी,औरत अब ये नहीं सहेगी।" रज्जो और कमली भी बड़े उत्साह से हाथ उठा उठा कर नारा लगा रहीं थीं।


अगली सुबह कमली लँगड़ाती हुई काम पर निकली और रज्जो को बुलाने पहुंची रज्जो मुंह पर दुपट्टा बाँध कर निकली। दोनों ने एक-दूसरे को देखा और गले लगकर रोने लगीं। रज्जो के शरीर पर जगह-जगह नील थी और आँख सूजी थी।कमली की कमर और पैर पर डंडों के निशान थे।उनका कल्याण हो गया था।


(यही सच है हमारे समाज का, आज भी बदलाव पूरी तरह से नहीं आया है)
अभिलाषा चौहान



टिप्पणियाँ

  1. मार्मिक । एक कड़वा सच को कहती लघु कथा ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (15-10-2022) को "प्रीतम को तू भा जाना" (चर्चा अंक-4582) पर भी होगी।
    --
    कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  3. कुछ हल तो होगा ही ऐसी शोषित महिलाओं को शोषण से बाहर निकलने के लिये ।
    वैचारिक दृष्टि प्रदान करने वाली कविता।

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  4. बहुत ही मर्मांतक कहानी है अभिलाषा जी।इस तरह की महिलाएँ हर गाँव,शहर और कस्बे में मौजूद हैं,जिनकी गाढी मेहनत से घर का चूल्हा चलता है और यदा-कदा उनकी टांग और हड्डी तुडाई का उपक्रम भी चलता रहता है।अशिक्षित और आर्थिक रूप में पिछडी महिलाएँ बहुधा रज्जो और कमली सरीखा जीवन जी रही हैं।

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