गूँज -लघुकथा
मम्मी! मुझे दीवाली पर नए कपड़े चाहिए और आप भी अपने लिए एक साड़ी ले लो।बेटी बार-बार जिद कर रही थी।
सुन सुन कर रमा चिढ़ उठी।अपने बाप से बोल, मेरा माथा क्यों खा रही है।
आप क्यों नहीं बोल सकतीं , आप कैसे ऐसा जीवन जी सकती हो,हर बार हर बात के लिए पापा से क्यों पूछना होता है?महिला सशक्तीकरण का जमाना है।
सोलह साल की बेटी का खून उबाल मार रहा था।
तू नहीं समझेगी,तेरा ब्याह होगा तब सब समझ में आ जाएगा।तू ही क्यों नहीं कह देती अपने बाप को??रमा झल्ला उठी थी।
शाम को उसने अपने बाप से वही बात कही जो मां से कही थी।पिता बेटी को बस इतना बोला-सोचेंगे इस बारे में...
सोचना क्या है पापा,मां को देखो अपनी कोई इच्छा आपको नहीं बताती और न ही कभी अपने लिए कुछ खरीदती है आपसे बिना पूछे!
चुप कर तू बाप से ज़बान लड़ाती है...थके हारे आदमी को क्यों परेशान करे है?
तो सहती रहो चुपचाप,जैसे खुद जीती हो ,वैसे मुझे नहीं जीना बेटी पैर पटकती चली गई।
रमा पति की ओर देख धीरे से बोली-मन खराब मत करो जी नासमझ है मैं समझा दूँगी।
तू समझाएगी तू ही सिखा रही है उसे,दूसरे घर जाएगी तो नाक कटाएगी।महीने के खर्चे का हिसाब दे मुझे,मर-मर के कमाता हूँ और ये मां-बेटी मुझे ही पाठ पढ़ा रहीं हैं।ये ले अगले महीने के पांच हजार रूपए..चाहे खा ले या पहन ले।
रमा ने महीने का हिसाब दिया।ये चार सौ रुपए काहे पर खर्च किए तूने??
जी वो मैं....बेटी के हेयर कलर पर...सब करते हैं तो उसे भी ...
सुनते ही एक जोर का चाँटा रमा के गाल गूंज उठा और महिला सशक्तीकरण का नारा उस गूँज में कहीं खो गया।
अभिलाषा चौहान
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 13 अक्तूबर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सहृदय आभार आदरणीया सादर
जवाब देंहटाएंआर्थिक स्वतंत्रता, आत्मनिर्भरता के बिना महिला सशक्तिकरण एक स्वप्न ही रह जाता है।
जवाब देंहटाएंसमाज को आइना दिखाने वाली लघु कथा ।,🙏🙏
बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंअंत जो हुआ वो यथार्थ ना बने
जवाब देंहटाएंसार्थक रचना
जवाब देंहटाएंअगर इस चांटे के जवाब में एक ज़ोरदार चांटा आदरणीय पतिदेव के कोमल गाल पर पत्नी के हाथों का पड़ता और एक बेटी के हाथ का, उनके दूसरे गाल पर भी पड़ता तो नारी सशक्तीकरण का नारा तो वो बेचारे स्वयं ही लगाने लगते.
जवाब देंहटाएंअभिलाषा जी, चाँटे की गूँज बेटी ने भी सुनी होगी । फिर क्या हुआ ? जो हुआ होगा, होना चाहिए, वो पाठक के सुपुर्द कर दिया आपने । ;)
जवाब देंहटाएंएक माँ का कमजोर व्यक्तित्व कहीं न कहीं बेटी को विद्रोही जरुर बनाता है।पुरूषवादी सत्ता वाले परिवार की मार्मिक अभिव्यक्ति।
जवाब देंहटाएं