साँझ हुई माँ लाई दाना -नवगीत

साँझ हुई माँ लाई दाना प्रत्याशा में शावक चहके पूरे दिन से करें प्रतीक्षा पेट क्षुधा पावक बन दहके। तिनका-तिनका जोड़-जोड़ कर नीड़ बनाती कितना सुंदर बड़े यत्न से रक्षा करती पाल रही सपनों को अंदर आँधी-बर्षा और शीत से लड़ती है वह सबकुछ सहके छोटे-छोटे पंख भले हों उड़ती फिरती नील गगन में शावक उसके उड़ना सीखें रहें न पीछे इसी लगन में सफल हुई तब ममता उसकी शावक का जीवन जब महके पंख बने फिर उड़ते शावक ममता देख-देख खुश होती छोड़ नीड़ को उड़ जाते हैं मोह बँधी वह भी कब रहती जीवन बंधन-मुक्त रहे जब तभी खुशी मन आँगन लहके। अभिलाषा चौहान