कह मुकरी छंद

 



"कहमुकरी"जैसा कि नाम से ही ज्ञात हो रहा है,'कहना और मुकर जाना'।यह एक लोक छंद है।  'अमीर खुसरो'ने हिंदी भाषा में 'कह मुकरी'छंद में कई सर्वश्रेष्ठ कहमुकरियाँ रची।उसके बाद भारतेन्दु हरिश्चन्द्र और अन्यान्य कवियों ने भी इस विधा को आगे बढ़ाया।यह सोलह मात्राओं का छंद विधान है।इसकी संरचना चौपाई छंद के समान ही होती है। लयात्मकता,गेयता और पहेली की आभा इस छंद के सौंदर्य को बढ़ाती है।बिम्बात्मकता से इस छंद में चार चाँद लग जाते हैं।यह छंद दो सखियों के वार्तालाप का जीवंत दृश्य उपस्थित करता है, इसमें एक सखी दूसरी सखी से अपने साजन के बारे में बात करती है।प्रथम दो पंक्तियों में ऐसा बिंब बनाती कि दूसरी को लगता है कि वह साजन के बारे में बता रही है, लेकिन जब वह पूछती है तो वह मुकर जाती है। इस प्रकार यह छंद रोचक रचना विधान के साथ पाठक के मन की जिज्ञासा को बढ़ाता है।

इस छंद की सुंदरता १६ मात्राओं के प्रयोग से बढ़ जाती है,पर कभी-कभी १५ और १७ मात्राओं का प्रयोग भी देखने को मिलता है।तुक और लय इसकी विशेषता है।इसके चार चरण होते हैं।प्रत्येक चरण के अंत में ११११, ११२,२११,२२ का प्रयोग करने से छंद विधान का सौंदर्य बढ़ जाता है।कभी-कभी तीसरे चरण में १५ मात्राएँ प्रयुक्त होती हैं तो चतुर्थ चरण में भी १५ मात्राओं का प्रयोग करने से छंद की लयात्मकता बाधित नहीं होती। मैंने भी इस विधा में कुछ सृजन किया है।पढ़कर मुझे मेरी गलतियों से अवगत कराइए।


निद्रा से बस नाता उसका,
कितना ठेलूँ वह ना खिसका।
अड़ियल वह तो बड़ा निख्खटू,
हे सखि साजन!ना सखि टट्टू।

सूरज सा वह घर में चमके,
रूप अनोखा उसका दमके।
अखियाँ उसको तकती जाती,
का सखि साजन!ना सखि नाती।

3
देह लटकता कुर्ता ढ़ीला,
दिखने में है बड़ा रँगीला।
करे कर्म नित कभी न चूका,
हे सखि साजन! नहीं बिजूका।

तरह-तरह के स्वाँग रचाए,
कभी हँसाए कभी रुलाए।
मन की पीर सदा हर लेता,
हे सखि साजन!ना अभिनेता।

5
मध्य रात्रि वह घर में आया,
उसने मुझको बहुत सताया।
उसने मुझको पकड़ा कसकर,
हे सखि साजन!ना सखि तस्कर।
6
चोरी चुपके घर में आया,
बाँह पकड़ फिर मुझे उठाया।
हाथ लिए था वो तो चाकू,
हे सखि साजन!ना सखि डाकू।

एक बार जो उसको पाता,
अपना सबकुछ दाँव लगाता।
कर दे वो सबको मतवाला,
हे सखि साजन!ना सखि हाला।

सुंदर अति वह सबसे न्यारा,
मुझे लगे वह इतना प्यारा।
उसे देख खो देती धीरज,
हे सखि साजन!ना सखि नीरज।

झूम-झूम वो चलता ऐसे,
मस्त पवन का झोंका जैसे।
चढ़ती उसको कितनी मस्ती,
हे सखि साजन!ना सखि हस्ती।(हाथी)
१०
सबको चीज बराबर बाँटे,
गलत-सही को वो तो छाँटे।
करे कर्म वो सूरत निखरी,
हे सखी साजन!ना सखि तखरी।
११
जब-जब वह आँगन में आता,
देख उसे मन है मुस्काता।
नेह लुटाता वह तो भर-भर,
हे सखि साजन!ना सखि शशधर।
१२
तन से निर्बल मन से कोमल,
नहीं जानता वह तो छल-बल।
नेह मिले वो इसका इच्छुक,
का सखि साजन!ना सखि भिक्षुक।
१३
मुझे देख कर वो हर्षाए,
अपना नेह सदा बरसाए।
करे समर्पित वो तो तन-मन,
हे सखि साजन!ना सखी श्वजन।(कुत्ता)
१४
बोल प्रशंसा के वह बोले,
साहस धीरज तब मन डोले।
ओज शौर्य वो करता धारण,
हे सखि साजन!ना सखि चारण।
१५
सदा झुंड में रहता है जो,
भारी भरकम प्यारा है वो।
क्रोध करे पर नहीं अकारण,
हे सखि साजन!ना सखि वारण।(हाथी)
१६
बोल-बोल कर सदा सताए,
बात-बात में वह टर्राए।
सदा निकाले पंचम जो सुर,
हे सखि साजन!ना सखि दादुर।

१७ लट्टू (खिलौना)

नाच-नाच वो मुझे रिझाए,
करतब अपने सदा दिखाए।
हठी बने तो अड़ियल टट्टू,
हे सखि साजन!ना सखि लट्टू।
१८ व्याल(सर्प)
देख उसे हिय थर-थर काँपे,
बैठ रही नयनों को ढाँपे।
साँस रुकी हो गई बेहाल,
हे सखि साजन!ना सखी व्याल।

१९ श्रमण(भिक्षु)

ज्ञान-ध्यान में रहता डूबा,
लगे प्रेम से वह तो ऊबा।
जाने कहाँ-कहाँ करे भ्रमण,
हे सखि साजन!ना सखी श्रमण।
20
रूप अनोखा लगता प्यारा,
उछल-कूद में सबसे न्यारा।
उसका रूप लगे ज्यों पीतल,
हे सखि साजन!ना सखि चीतल।
21
बड़ा रसीला कोमल-कोमल,
देख उसे हिय तरसे हरपल।
अवसर पर बढ़ जाते तेवर,
हे सखि साजन!ना सखि घेवर।
२२
माथे चंदन तिलक लगाकर,
धर्म-कर्म में ध्यान सदा धर।
हाथ लिए वो रहता डंडा,
हे सखि साजन!ना सखि पंडा।
२३
कभी उछलता फिर छुप जाता,
दौड़-दौड़ वह सदा थकाता।  
बसे सजगता अंग प्रत्यंग,
हे सखि साजन!ना सखि कुरंग।
२५
गोल-गोल वह घूमे ऐसे,
गाड़ी का पहिया हो जैसे।
नितप्रति चखती मक्खन मुई,
हे सखि सजनी!ना सखि रई।
२६
भृकुटी तने लाल  हो जाए।
सुख में सबका मान बढ़ाए।
उसको प्यारी अपनी धाक,
हे सखि साजन!ना सखि नाक।
२७

गोद लिटा कर मुझे सुलाए,
कोई भेद नहीं रह जाए।
लगता सुन्दर उसका चोला,
हे सखि साजन! नहीं खटोला।

२८
भरे भुवन में रहता पसरा,
अपनेपन को देता बिसरा।
उसके जैसा होगा कौन,
हे सखि साजन! ना सखि मौन।
२९
जितनी छोटी उतनी खोटी,
तन से पतली सिर से मोटी।
काम करे वो लगती मलंग,
हे सखि दासी!ना सखि लवंग।
३०
गोल-गोल सा कद में छोटा,
ग्रीष्म शीत में उसका टोटा।
सावन में वह कितना दौड़ा,
क्या सखि साजन! नहीं ककोड़ा
३१

योग-ध्यान से जीवन साधे,
जपता वो तो राधे-राधे।
सत्कर्मों से बना यशस्वी,
क्या सखि साजन! नहीं तपस्वी।
३२
मन में खोट सदा जो पाले,
अवसर देखे काम निकाले।
खुशियाँ उसने सबकी झपटी,
क्या सखि साजन!ना सखि कपटी।
३३
जगे रात में और जगाए,
गोल-गोल से नयन घुमाए।
उससे होती कोई न चूक,
क्या सखि साजन!ना सखि उलूक।(उल्लू)
३४
लहरों से जो हाथ मिलाए,
साहस धीरज रखे बनाए।
रही देखती उसको जी भर,
हे सखि साजन!ना सखि धीवर।(मल्लाह)
३५
पड़ा धूप में मुँह को फाड़े,
और नजर से सबको ताड़े।
उसको जल से लगता न डर,
क्या सखि साजन!ना सखि मकर।(मगर)
३६
दाढ़ी-मूँछों को वह नापे,
जन-जन उसका राग अलापे।
उसके बिन जीवन है शापित,
हे सखि साजन!ना सखि नापित।(नाई)
३८
मीठी-मीठी उसकी बोली,
कानों में मिश्री सी घोली।
उसे देख मुख आए लाली,
हे सखि साजन!ना सखि आली।(सखी)
३९
खेत खड़ा हो जब लहराता,
सबके मुख पर खुशियाँ लाता।
देख उसे मन गाता झूम,
हे सखि साजन! ना गोधूम।(गेहूँ)
४०
देख उसे मुँह पानी आए,
नयनों में जो बस-बस जाए।
उसपर नीयत बिगड़ी मेरी,
हे सखि साजन! नहीं महेरी।
(छाछ में पका कर खाया जाने वाला पकवान)
४१
दूध-दही का है मतवाला,
गाय-भैंस को उसने पाला।
लगता मुझको वो तो हीर,
हे सखि साजन!ना आभीर। (अहीर)
४२
रात कान में वो तो बोला,
नींद चैन फिर सब ही डोला।
उसने छोड़ी ऐसी कसक,
ए सखि साजन!ना सखि मशक।(मच्छर)
४३
सबके आगे-पीछे घूमे,
भोजन देखे तो वह झूमे।
करता रहता दिन-भर नृत्य,
हे सखि साजन!ना सखि भृत्य।(नौकर)
४४
ध्यान योग में ऐसा डूबा,
माया से रहता है ऊबा।
मोक्ष मार्ग का वो है पंथी,
हे सखि साजन!ना सखि ग्रंथी।(गुरुग्रंथ का पाठ करने वाला)
४५
कितना सहता गिरता पड़ता,
भाव शून्य सा बनकर रहता।
उसकी गाथा कहना दुष्कर,
हे सखि साजन!ना सखि प्रस्तर।
४६
रात मिलन की पहली आई,
बैठी शैया लूँ अँगड़ाई।
वो आ बैठा बोले पट-पट,
हे सखि साजन!ना सखि पर्पट।(पापड़)
४७
अद्भुत अनुपम कला दिखाए,
जीवन रंगों से खिल जाए।
उसने हिय छीना है मेरा,
हे सखि साजन! नहीं चितेरा।
४८
प्रतिदिन मेरी नकल उतारे,
नहीं दिखूँ तो मुझे पुकारे।
दिखे सदा वह बड़ा अधीर,
हे सखि साजन!ना सखि कीर।(तोता)
४९
तोल-मोल कर करता बातें,
बातों में कर देता घातें।
दया धर्म कब उसमें क्षणिक,
हे सखि साजन!ना सखि वणिक।
(बनिया, व्यापारी)
५०
पल-पल जिसका पंथ निहारूँ,
सुख-दुख जिसपर अपना वारूँ।
उसका कर्म सदा से न्यारा,
हे सखि साजन !ना हरकारा।

(हरकारा-डाकिया)

४५

जीवन को नव राह दिखाए,
अंधकार भी वही मिटाए।
उससे पाएँ सब ही ईशा,
हे सखि साजन! नहीं मनीषा।

(ईशा-अधिकार)
(मनीषा-बुद्धि)

४६

भारी-भरकम काया वाला,
देख उसे मुख पड़ता ताला।
नहीं करे वह कोई चूक,
हे सखि साजन!ना भल्लूक।
४७

मेवा घी गुड़ उसको भाता,
गर्म मसालों से सुख पाता।
वह तो लगता जैसे नीरा,
हे सखि साजन! नहीं हरीरा।

नीरा-अमृत
हरीरा-मेवों से बना प्रसूता को दिया जाने वाला व्यंजन
४८
लहराती बलखाती वे हैं,
श्याम घटा सी छाती ये हैं।
उन्हें देख कब झुकती पलकें,
हे सखि लहरें !ना सखि अलकें।

(घुँघराले लंबे केश)

४९

चुपके से वो घर में आए,
यहाँ-वहाँ ऐसे छिप जाए।
जैसे सुई गिरी हो भूसा,
हे सखि साजन!ना सखि मूसा।(चूहा)

५०
काम पड़े तो मीठी बातें,
अवसर देख करे जो घातें।
कर्म करे वो सदा विचित्र,
हे सखि साजन! नहीं अमित्र।(बैरी)

५१

श्वेत वर्ण सुंदर है काया,
मोहित करती उसकी माया।
दिखने में वो लगे कमाल,
हे सखि साजन! नहीं कराल। (हंस)

अभिलाषा चौहान

टिप्पणियाँ

  1. प्राचीन काव्य-परंपरा को पुनर्जीवित करने का उत्तम प्रयास !
    बिजूका, हाला, घेवर और मूसा वाली कह मुकरियां बहुत विनोदपूर्ण हैं.

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    उत्तर
    1. आपकी प्रेरणादायक प्रतिक्रिया पाकर धन्य हुई आदरणीय सहृदय आभार सादर

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  2. वाह!सखी,बहुत सुन्दर सृजन । अमीर खुसरो जी को पढा था संगीत में ..। आपने इस विधा पर सृजन कर हम पाठकों को लाभान्वित किया ,बहुत-बहुत धन्यवाद।

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    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी आपकी प्रेरणादायक प्रतिक्रिया पाकर धन्य हुई।एक प्रयास किया है मैंने, आपकी प्रतिक्रिया से वह सार्थक हुआ।सादर

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    2. वाह अभिलाषा जी, आपने कहमुकरी छंदों की झड़ी लगा दीं... हार्दिक साधुवाद!--ब्रजेन्द्र नाथ

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    3. प्रेरणादायक प्रतिक्रिया पाकर धन्य हुई आदरणीय सहृदय आभार सादर

      हटाएं
  3. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 18 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. बहुत ही सुंदर भावपूर्ण सृजन

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  5. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (18-9-22} को विश्वकर्मा भगवान का वंदन" (चर्चा अंक 4555) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
    ------------
    कामिनी सिन्हा

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  6. वाह सखी! अमीर खुसरो जी का ये छंद रोचक ही नहीं कलात्मक भी है।
    बहुत सुंदर सृजन।

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  7. बहुत ही सुन्दर कहमुकरियाँ

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