हिंदी दिवस पर विशेष
हम हर साल हिंदी दिवस मनाते हैं और अपने कर्तव्य की इति श्री कर लेते हैं।पता नहीं यह कैसा चलन है कि अब किसी के प्रति अपने भाव अभिव्यक्त करने के लिए या अपनी जिम्मेदारी निभाने के लिए एक दिन सुनिश्चित कर लिया गया है।उस दिन जोर-शोर से कार्यक्रम होते हैं,सब अपनी भागीदारी निभाकर फिर सब भूल जाते हैं। चाहे पुत्री दिवस हो,मातृ-दिवस हो या पितृ-दिवस हो या और कोई सा भी दिवस।
ऐसा लगता है हमने दिखावा करना बखूबी सीख लिया है।अब हम दिखावे को सत्य मानते हैं या फिर इतने भुलक्कड़ है कि अपने कर्तव्यों को भूल जाते हैं और हमें अपने कर्तव्य याद दिलाने के लिए साल में एक बार इन दिनों को मनाने की तिथि निर्धारित कर दी गई है।तभी तो नई पीढ़ी ने भी यह सीख लिया है कि माता-पिता,बहन-बेटी सिर्फ कभी-कभी याद करने बात है।भाषा तो बहुत दूर की बात है।अगर हम इतने ही कर्तव्य-निष्ठ होते तो अंग्रेजियत के गुलाम बनकर थोड़े ही रहते।आजकल बड़े -बड़े स्कूलों में बच्चों को "अ आ इ ई "ही नहीं सिखाई जाती।अब यह भी कोई सिखाने की चीज है,इससे कोई सम्मान तो मिलने वाला नहीं,जब तक आप फर्राटेदार अंग्रेजी नहीं बोलते,आप समाज में प्रतिष्ठा नहीं पा सकते।हमारे दूर-दर्शन पर ही शुद्ध हिन्दी के दर्शन दुर्लभ है।हाँ हिंग्लिश अपना सिर गर्व से उठाए नजर आती है।जब ऐसी स्थिति हो तो हिंदी-दिवस मनाने का औचित्य क्या है???
कितने दुख की बात है कि अपने ही देश में हिंदी को राष्ट्रभाषा के पद पर आसीन होने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है।इसके लिए भी हम स्वयं ही जिम्मेदार है,जब तक हमें हिंदी बोलकर गर्व की अनुभूति नहीं होती,तब तक हिंदी को उसका गौरव कैसे मिल सकता है।हम किसी के प्रति भी अपनी प्रतिबद्धता नहीं निभा रहे।न तो हम पूरी तरह से हिंदी को ही अपना पा रहे हैं और न ही अंग्रेजी सीख पा रहें हैं।बस इन दोनों की खिचड़ी बनाकर भाषा का स्वरूप बिगाड़ रहें हैं।पर मुझे अपनी मातृभाषा बहुत प्रिय है। वैश्वीकरण के इस दौर में भाषायी ज्ञान को परिष्कृत होना चाहिए।एक से अधिक भाषाओं का ज्ञान होना चाहिए,पर हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है,हमें यह स्वीकार
करने में तनिक भी संकोच नहीं करना चाहिए।उसका रूप न बिगड़े इसका हर संभव प्रयास करना चाहिए।इससे ही विश्व में हमारी पहचान है। इसमें रचा साहित्य हमारी थाती है।यह एक समृद्ध भाषा है।अब मेरी एक रचना---
हिंदी है पहचान हमारी।
सब भाषाओं से ये प्यारी।।
मधुर-मधुर यह मन को भाए।
भाव सुधा रस पान कराए।
देवनागरी इसकी शोभा।
पढ़-लिखकर जन का मन लोभा।।
शब्द-शब्द हैं रस बरसाते।
अमृत अर्थ का हैं छलकाते।।
राज-काज की भाषा हिंदी।
भारत के माथे की बिंदी।।
सबसे सुंदर सबसे न्यारी।
जन-जन हो इस पर बलिहारी।।
अखिल विश्व में सबसे न्यारी।
संस्कृत की ये राजदुलारी।।
सरल सहज सुंदर निजभाषा।
इसकी कैसे दूँ परिभाषा।।
आज चलन ये कैसा आया।
हिंदी की बदली जो काया।।
अंग्रेजी हिन्दी की खिचड़ी।
सूरत इसकी जाए बिगड़ी।।
अंग्रेजी पीछा क्यों छोड़े।
हिंदी से मुख जब हम मोड़ें।।
सीखें हम कोई भी भाषा।
बने किसी के क्यों हम दासा।।
हिंदी गौरव बने हमारा।
कवियों की गूँजे सुर धारा।।
गंगा सी ये निर्मल पावन।
मीठी मोहक है मनभावन।।
विश्व प्रसिद्ध बने यह भाषा।
इसकी पूरी हो अब आशा।।
हम अपना कर्तव्य निभाएँ।
इसकी ना पहचान मिटाएँ।।
अभिलाषा चौहान
चित्र गूगल से साभार
आज चलन ये कैसा आया।
जवाब देंहटाएंहिंदी की बदली जो काया।।
अंग्रेजी हिन्दी की खिचड़ी।
सूरत इसकी जाए बिगड़ी।।
आब तो खिचड़ी ही प्रयोग में आ रही है , नई वाली हिंदी कह कर । सार्थक और सटीक लेखन।
सहृदय आभार आदरणीया सादर।आपकी प्रेरणादायक प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई आपको हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सादर
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (14-09-2022) को "आओ हिन्दी-दिवस मनायें" (चर्चा अंक 4551) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
कृपया कुछ लिंकों का अवलोकन करें और सकारात्मक टिप्पणी भी दें।
--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सहृदय आभार आदरणीय सादर आपको हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
हटाएंबहुत सुन्दर !
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय सादर आपको हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार
हटाएंसहृदय आभार सखी सादर
जवाब देंहटाएंबहुत शानदार रही पूरी कविता, आज बहुत दिनों बाद आ पाई इधर...मन तृप्त हुआ अभिलाषा जी...हिंदी दिवस की शुभकामनायें आपको
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार अलकनंदा जी,आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य है।आप ब्लॉग पर आईं ये मेरे लिए गौरव की बात है। आपको हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
हटाएंसही कहा आपने सखी कि"हमने दिखावा करना बखूबी सीख लिया है"। ये दिवस मनाने का चलन तो मुझे भी कभी नहीं भाया।
जवाब देंहटाएंमैं भी अलकनंदा जी की तरह ही काफी दिनों बाद ब्लाग भ्रमण पर निकली हूं।
एक विचारणीय लेख के साथ लाजबाव कविता का सृजन किया है आपने,सादर नमस्कार 🙏
सहृदय आभार सखी आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया मेरे लिए अमूल्य है।आपने सत्य कहा मुझे भी ये दिवस मनाने का चलन नहीं भाता।बस एक दिन कुछ याद करो ।कुछ विशेष करने की कोशिश करो और फिर भूल जाओ।आपको हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं,सादर
हटाएंसार्थक और सारगर्भित विमर्श से संभवतः भाषा समृद्ध हो.…. यही कामना है।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार अमृता जी आपकी प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई।आपको हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सादर
हटाएंहिंदी गौरव बने हमारा।
जवाब देंहटाएंकवियों की गूँजे सुर धारा।।
गंगा सी ये निर्मल पावन।
मीठी मोहक है मनभावन।।
आदरणीय , सुंदर अभिव्यक्ति ।
हिंदी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं
सुंदर सार्थक प्रतिक्रिया के लिए आपका सहृदय आभार आपको हिन्दी दिवस की हार्दिक शुभकामनाएं सादर
हटाएंहर साल हम हिंदी दिवस मनाते हैं और इतिश्री कर लेते हैं ..यह कैसा चलन हैं ... ऐसे ही कुछ विचार मेरे में भी उठते हैं .. हिंदी हिन्दुस्तान की राष्ट्रभाषा क्या एक दिवस मनाने से हमारा कर्तव्य पूरा हो जाता है .... हिंदी सर्वप्रथम सर्वोपरि करना होगा ...
जवाब देंहटाएं