न्याय उसे कब मिल पाएगा???


हमने ऐसे समाज की कल्पना तो नहीं की थी,जहाँ मासूम बच्चियों का जीवन असुरक्षित हो जाए।एक और जहाँ बालिका शिक्षा,'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ,सुकन्या समृद्धि,लाडली लक्ष्मी जैसी योजनाएँ बालिका के जीवन को बेहतर बनाने के लिए चलाई जा रहीं। बेटियों को आत्म निर्भर बनाने,उन्हें चूल्हे-चौके से निकाल कर समाज की मुख्य-धारा से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। भ्रूणहत्या,बालविवाह जैसी कुप्रथाओं को मिटाने की बात की जा रही है,वहीं दूसरी ओर दुधमुँही बच्चियों से लेकर किशोर,युवा यहाँ तक कि महिलाएँ भी इस समाज में सुरक्षित नहीं है,पता नहीं कैसी मानसिकता पनप रही है।

दुमका की अंकिता हो या दिल्ली की वो छात्रा (जिसे सरे राह गोली मारी गई)या फिर कोई आदिवासी बाला या फिर कोई बिलकीस बानो किसी का जीवन सुरक्षित नहीं है।कौन कब हैवान बन जाए,पता नहीं है! वो न अपनों से बची है और न ही बाहर वालों से।

क्या ऐसी परिस्थितियों में बेटी या नारी सशक्तिकरण की अवधारणाएँ साकार हो सकती हैं? कुछ महिलाओं,तरुणियों, किशोरियों च्चियों को अनुकूल वातावरण मिलने से वे सक्षम बन जाती है, लेकिन उनका क्या जो आज भी शोषित,पीड़ित हैं,कैसे उन्हें इन सिरफिरों, मनचलों और नारी को मात्र भोग्या समझने वाले हैवानों से मुक्ति मिल पाएगी?

"इसी पर आधारित मेरी एक रचना "


मर्यादाएं झुलस रही हैं, सीमाएँ सब टूट रहीं हैं। कब तक मौन रहेगा मुख पर, घुटती साँसें पूछ रहीं हैं। कभी झुलसती अंदर घर के, कभी बिलखती बाहर घर के। दोष उसी को सब हैं देते, जीवन जीती बस मर-मर के।

अबला कहता है जग सारा, कोई नहीं है पालन हारा। शीश उठा कर वह जो चल दे, पल-पल जाता है दुत्कारा। ये विकास की बातें मिथ्या, नैतिकता की होती हत्या। बर्बरता नित ढोल पीटती, नारी को जो माने भृत्या। कोमल कलियाँ कब खिल पाती, खिल जाएँ तो मसली जाती। कंटक शीश उठा कर चलते, भ्रमरों से कैसे बच पाती। घर-घर घटती यही कहानी, अबला की पहचान मिटानी। कठपुतली सा जीवन जीती, बात सभी की उसने मानी। कब ऐसा वह दिन आएगा, निर्बल अपना बल पाएगा। घर-घर घुटती लुटती अबला, न्याय उसे कब मिल पाएगा? कब निर्भय होकर डोलेगी, मन की बात कभी बोलेगी। अपना हक कब उसे मिलेगा, दुनिया कब तक यूँ तोलेगी? खेत गाँव खलिहान कलंकित, शहर डगर करते आतंकित। रक्त सने मंदिर मस्जिद भी, तन घायल मन पल-पल शंकित। मूक बने ये दर्शक जैसे, बोल खोखले बोलें ऐसे। मरी आत्मा ही जब उनकी, भेद हृदय के खोलें कैसे। कैसी विकृत सोच है इनकी, कहाँ जनमते ऐसे सनकी। तन से मानव मन से भेड़िया, नहीं ढोर से समता जिनकी। जागो अब तो सोने वालो, भेद-भाव मत मन में पालो। रहे सुरक्षित अब तो बेटी, नयी सोच में खुद को ढालो।


टिप्पणियाँ

  1. आपने बिलक़ीस बानो का उल्लेख नहीं किया अभिलाषा जी। संभवतः उस अभागी के साथ हम जैसे तथाकथित संवेदनशील व्यक्तियों को कोई सहानुभूति नहीं है जिसके दुराचारी एवं दुधमुँही बच्ची के हत्यारे कारागार से छोड़ दिए गए हैं। आप ही के शब्दों में उसे न्याय कब मिल पाएगा ? दरअसल समस्या यही है कि हम पीड़िता एवं आततायी दोनों को ही धर्म के ऐनक से देखते हैं। इसीलिए उत्पीड़न निरंतर होते रहते हैं। जब तक हम पीड़िता-पीड़िता में भेद करते रहेंगे, वे कैसे रूक पाएंगे ?

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    1. आदरणीय आपका कथन सर्वथा उचित है,मेरे ध्यान से यह बात निकल गई। मैं सिर्फ और सिर्फ उन शोषित, पीड़ित बच्चियों और अबलाओं की बात कर रही थी जो सिर्फ नारी वर्ग से संबंधित हैं,किसी धर्म या संप्रदाय से मेरा कोई लेना-देना नहीं है।आपने मेरा ध्यान इस ओर आकर्षित किया।इसके लिए मैं हृदय तल से आभार प्रकट करती हूँ।नारी सिर्फ नारी होती है,उसके साथ होने वाले दुराचार की पीड़ा भी समान होती है।बदले की आग बुझाने के लिए भी नारी की मर्यादा भंग की जाती है। मैंने अपनी यह रचना उन सभी अबला नारियों और मासूम बच्चियों को समर्पित की हैं जो हैवानों के कारण या तो जिंदगी से हाथ धो बैठी या मर्मांतक पीड़ा झेल रहीं हैं।आपका पुनः आभार आप सदैव मेरा मार्ग प्रशस्त करते हैं।यह मेरे लिए गौरव की बात है।सादर

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  2. बहुत ही सुन्दर और सार्थक रचना

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  3. सत्तासीन चिकने घड़ों पर शोषिता, पीड़िता, प्रताड़िता, अपमानिता, परित्यक्ता और शापिता की आँखों से टपके आंसू भला कहाँ ठहरेंगे?
    पुरुष-प्रधान समाज की विभीषिका को दर्शाती एक मार्मिक कविता !

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  4. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" शुक्रवार 09 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  5. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  6. बच्चियाँ हों , किशोरी हो या नारी हो , किसी भी उम्र की हो कोई हैवानियत से नहीं बच पा रही है ।
    आक्रोशित मन से लिखी बेहतरीन रचना । विचारणीय ।।

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    1. सहृदय आभार आदरणीया आपकी प्रेरणादायक प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई सादर

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  7. बहुत बहुत सुन्दर मार्मिक रचना

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  8. स्त्री की मनःस्थिति और उसके जीवन में में जो अड़चनें हैं उनकी बहुत महीन पड़ताल करती मार्मिक भूमिका के साथ
    अर्थपूर्ण और प्रभावी रचना

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    1. सहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रेरणादायक प्रतिक्रिया पाकर रचना सार्थक हुई सादर

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    1. सहृदय आभार आपका ब्लॉग पर आने के लिए सादर

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