मौन है संवेदनाएं





मौन है संवेदनाएं

ढूँढते कारण नहीं

पत्थरों पर शीश पटका

पर मिला तारण नहीं।


कर्ण भेदी चीख गूँजे

चीखते सपने जले

आँख के सूखे समंदर

प्राण अब कैसे पले

इस व्यथामय वर्जना की 

हूक साधारण नहीं।।


बंद महलों ने न जाना

झोंपड़ी के दर्द को

ताप कितना झेलते वे

या कि मौसम सर्द हो

दे दिए ताले मुखों पर

व्यर्थ उच्चारण नहीं।


खेलते हैं खेल नित ही

चाँद की बातें करें

नाग बनके विष उगलते

नीलकंठी हिय धरें

रक्तबीजों की फसल है

हो रहा पारण नहीं।




टिप्पणियाँ

  1. बहुत ही सुन्दर भाव संप्रेषण 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. कर्ण भेदी चीख गूँजे
    चीखते सपने जले
    आँख के सूखे समंदर
    प्राण अब कैसे पले
    इस व्यथामय वर्जना की
    हूक साधारण नहीं।।
    ...बहुत हो गहन लिखा है आपने ।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी लिखी रचना  ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 04 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
    पाँच लिंकों का आनन्द पर
    आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं

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