घुटन
पुरुष सत्तात्मक समाज में दबी-कुचली अपनी इच्छाओं को मारकर दूसरों के हिसाब से चलने वाली उन सभी नारियों को समर्पित जो घर की धुरी होते हुए भी कोई भी कार्य बिना पुरुष की मर्जी के नहीं कर सकती।
कितने ही अंशों में
विभाजित मैं
भूलती अपना अस्तित्व
कौन हूँ मैं ??
लोगों की नजर में
भाग्यशाली
ये लोग ही
करते हैं मेरे
सौभाग्य-दुर्भाग्य का निर्धारण
ये जो बनके बैठे हैं नियंता
कभी जानी नहीं इच्छा
कभी पनपने नहीं दिया मेरा वजूद।
कुचली हुई इच्छाओं की
चिता पर बैठी
एक कठपुतली!!!
वृक्ष के तने से लिपटी
लता के समान
बन गया अस्तित्व मेरा!
जो मैंने चाहा
खुद को जीना
तो मर्यादाओं की
खींच दी गई रेखा!
घर की चहारदीवारी
है वो लक्ष्मण रेखा
जिसे पार करना
अपने वजूद को तलाशना
है किसी युद्ध के जैसा!
थक चुकी हूँ
टुकड़ों में बँटी मैं
भूल गई हूँ
हँसना-रोना-सपने देखना
खिलखिलाना
बस मुझे चलते जाना है
मंजिल विहीन
इस यात्रा की 'घुटन'
जब चीखती है
तो हो जाती हूँ सुन्न
पथराई सी आँखों
में मन की पेटी में दबे
कुछ हसीन ख्वाब
आँसू बनकर झिलमिलाते हैं
पोंछ पल्लू से
ढोने लगती हूँ कर्तव्यों का भार
लेकर अधरों पर मुस्कान!
कुम्हलाए हृदय को
देती हूं दुत्कार
पता नहीं क्या है मेरा नाम
नारी के लिए
जब जरूरी ही नहीं
तो क्यों रखे जाते हैं नाम!
हर कोई तो नहीं होती
कामकाजी
घर का काम और नाम
कहाँ रखते मायने
फालतू सामान सी
कबाड़ को सहेजती
खुद बन जाती है कबाड़
जिसे जरुरत के वक्त
कर लिया जाता है याद।
भूल जाती है
कि कौन है वो
जन्म से लेकर मरण तक
और मरण के बाद भी
कौन याद करता है नाम
सब अपने-अपने हिस्से की
जरूरत को करते हैं याद
व्यथा और कथा
की अधूरी दास्तान
बस यही है मेरा वजूद।
अभिलाषा चौहान
वाह!सखी ,बहुत सही कहा आपने ।कठपुतलियों की तरह ही होता है अधिकांशत:महिलाओ का जीवन । अपनी खुशी ,इच्छाएं सभी को ताक में रखकर सारा जीवन जी लेती है ।
जवाब देंहटाएंऔर नारी के वज़ूद को नकारने वाले भूल जाते हैं कि उनका अस्तित्व भी नारी से ही है ।
जवाब देंहटाएंमन को मथ देने की सामर्थ्य रखती रचना ।
नारी की व्यथा को व्यक्त करती बहुत सुंदर रचना।
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर अभिलाषा जी. मैं इस कविता को आपकी श्रेष्टतम रचनाओं में रखना चाहूँगा. नारी के अंतर्मन की व्यथा का और उसकी कुंठा का, आपने बड़ा मार्मिक और सजीव चित्रण किया है.
जवाब देंहटाएंस्त्री मन की सबसे बड़ी वेदना का जीवंत चित्रण कर दिया आपने । कब तक आखिर कब तक स्त्रियों के साथ ये व्यवहार चलेगा । मर्मस्पर्शी रचना के लिए बधाई ।
जवाब देंहटाएंऐसा बलिदान जिसे हाशिये पर डाल दिया जाता है , स्वार्थलिप्तता में लिपटे रिश्ते कहाँ पहचान उस अस्तित्व को जिनसे उनका अस्तित्व जीवित है।
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 25 सितम्बर 2022 को साझा की गयी है....
जवाब देंहटाएंपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
इस कथित पुरुष प्रधान समाज में नारी की दुर्दशा और मनोस्थिति को जीवंत करती है यह रचना। यद्यपि पुरुषों को अस्तित्व लेने के लिए 9 माह नारी का ही सहारा लेना पड़ता है किंतु इस समाज की आज भी यह दुर्दशा है कि नारी आज भी अपना अस्तित्व खोज रही है और एक पुरुष होने के नाते मुझे इस विषय में बेहद शर्म और खेद है।
जवाब देंहटाएंमेरे घर में पुरुष के नाम पर मैं और मेरा 7 साल का बेटा है वही महिला मेरे घर में मेरी धर्मपत्नी मेरी माता जी और मेरी प्यारी 8 साल की बेटी है और यह मेरे लिए सौभाग्य की बात है कि मुझे इस संसार में सबसे अधिक प्यारी मेरी बेटी है
🙏🙏🙏
अभिव्यक्ति अनुभूति की अपना हो या आस पास की
जवाब देंहटाएंपुरुषों से विद्रोह करने की क्षमता और दृढ़ता पर निर्भर करता है स्त्रियों की आज़ादी
पथराई सी आँखों
जवाब देंहटाएंमें मन की पेटी में दबे
कुछ हसीन ख्वाब
आँसू बनकर झिलमिलाते हैं----बहुत अच्छी रचना।
मर्यादाओं की रेखाओं में बांध दी जाती .. कहते हैं.. सबके मन की करो तो आप सौभाग्यशाली.. नारी की इच्छा कौन जानता है .... नारी को बांधा गया और आज तक बंधी है ..नारी जीवन की सुन्दर अभिव्यक्ति
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएं