नीले अंबर सा यह सागर



नीले अंबर सा यह सागर,

लहरें कितनी चंचल है।

मदमाती ये चंद्र देखकर

उछलें कूदें हर पल हैं।


मुट्ठी रेत फिसलती जैसे

सरक रही नित ये घड़ियाँ

क्षण-क्षण का अवगुंठन हो

जुड़ जाएँ सारी कड़ियाँ

पल-पल को जी भर कर जीना

किसने देखा कब कल है।

मदमाती ये चंद्र देखकर

उछलें कूदें हर पल हैं।


मन मृग आतुर दौड़ रहा है

ढूँढ रहा है कस्तूरी

प्रेम भरा यह साथ हमारा

इच्छा कर लें सब पूरी।

टिक-टिक करती घड़ी बताती

समय नहीं ये अविचल है।

मदमाती ये चंद्र देखकर

उछलें कूदें हर पल हैं।


झरते पात मुरझाते सुमन 

कहते एक कहानी है।

रस की धारा बहती कल-कल

हर ऋतु लगे सुहानी है

निशा बाँध के चली पोटली

सूर्य उदित उदयाचल है।

मदमाती ये चंद्र देखकर

उछलें कूदें हर पल हैं।


अभिलाषा चौहान



टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(१२-०९ -२०२२ ) को 'अम्माँ का नेह '(चर्चा अंक -४५५०) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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