ये तितलियां डरी-डरी



ये तितलियाँ डरी-डरी,भय से जो हैं अधमरी।

सबकी हैं जो सहचरी,सुनो कथा ये दुख भरी।


बाग भी उजड़ गए 

पात-पुष्प झड़ गए

काल ये कराल है 

कौन करे ख्याल है 

ये भ्रमर दुष्ट डोलते

नित रूप-रंग तोलते

पंख भी झड़े -झड़े

धरा पर पड़े-पड़े

प्राण भी अब छोड़ती

सबसे मुख हैं मोड़ती


आह मन भरी-भरी,चाह भी धरी-धरी।

ये तितलियाँ डरी-डरी,भय से जो हैं अधमरी।


उड़ सकी न चार दिन

जी सकी न आस बिन

संग साथ छूट गया

और हृदय टूट गया

चुभे सब शूल सा

स्वप्न उड़े धूल सा

भोगती ये दंड क्यों

भ्रमर यूँ उद्दंड क्यों

बहेलियों के जाल में

वासना के ताल में

गिद्ध की निगाह से

मनचलों की आह से

लुटी-लुटी ये तितलियाँ

गिरी इन्हीं पे बिजलियाँ


सुन रही खरी-खरी,दुख से ये मरी-मरी।

ये तितलियाँ डरी-डरी,भय से जो हैं अधमरी।

अभिलाषा चौहान 






टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार(२६-०९ -२०२२ ) को 'तू हमेशा दिल में रहती है'(चर्चा-अंक -४५६३) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  2. गहन अभिव्यक्ति अभिलाषा जी ..
    ये तितलियां डरी- डरी भय से जो है अधमरी .. भ्रमर दुष्ट डोलता , मनचलों की आह से .. लुटी- लुटी ये तितलियां .. मनचले भ्रमरों को सही मार्गदर्शन .. मर्यादा .. में रहना सिखाना होगा ... मनमानी करने पर दण्ड देना आवश्यक है ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी सुन्दर प्रतिक्रिया हेतु सादर

      हटाएं
  3. तितलियों के माध्यम से प्रतीकात्मक शैली में सुंदर सटीक सृजन सखी जो आप कहना चाह रही हैं कहने में सक्षम रही रचना।
    अप्रतिम।

    जवाब देंहटाएं
  4. रचना के मर्म को समझने के लिए सहृदय आभार सखी सादर

    जवाब देंहटाएं

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