झर-झर झरते पात

झर-झर झरते पात, कहते जाते अपनी बात। पतझड़ लेकर आया सौगात, हम हुए अब बीते समय की बात। नव किसलय अब आने वाले हैं, नई कहानी सुनाने वाले हैं। झर-झर झरते पात, समेट चले अपनी सौगात। सिखाकर नव पीढ़ी को, प्रकृति परिवर्तन की बात। झर-झर झरते पात, कहते जाते अपनी बात। समय सभी का आना है, अपना दाय निभाना है। चलना सदा समय के साथ, झर-झर झरते पात, कहते जाते अपनी बात। सदा यही होता आया है, कोई सदा नहीं रह पाया है। नवजीवन की समझा के बात, झर-झर झरते पात, कहते जाते अपनी बात। तोड़ पुरातनपंथी रूढ़ियां, तोड़ चलो अब सभी बेड़ियां। चलना सदा समय के साथ, कहते जाते अपनी बात, झर-झर झरते पात। बीत गया हमारा जमाना, तुमको है सब सम्हालना। देना सदा भलाई का साथ, कहते जाते अपनी बात, झर-झर झरते पात। अभिलाषा चौहान स्वरचित मौलिक