आया सावन घिर आए बादल

आया सावन घिर आए बादल,
काले-काले श्याम रंग बादल।
सावन मास सुहाए बादल,
धरा को खूब सुहाते बादल।

उमड़-घुमड़ कर छाए बादल,
गरज-गरज के छाए बादल।
नवजीवन के सृजनकर्ता,
झूम-झूम के बरसो बादल।

कृषकों के दिल हर्षाए बादल,
राग-मल्हार गाए बादल,
क्रांति का गीत सुनाने वाले,
गरज-गरज के बरसो बादल।

विरहिन की पीर बढ़ाए बादल,
नयनों से नीर बहाए बादल।
सूने-सूने जीवन में फिर
यादों के घिर आए बादल।

धरती की प्यास बुझाते बादल,
अमृत रस बरसाते बादल।
छलक उठे सब नदी-सरोवर,
प्रेम की धार बहाते बादल।

©✍ अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक 😐

टिप्पणियाँ

  1. वाह ! सावन बड़ा मनभावन है। सुंदर रचना।

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  2. बहुत ही सुंदर रचना, अभिलाषा दी।

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत ही सुन्दर सृजन प्रिय दी जी
    सादर

    जवाब देंहटाएं
  4. नमस्कार !
    आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" 15 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  5. बहुत सुंदर रचना सखी।बेहतरीन।

    जवाब देंहटाएं

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