फकत् आंसू नहीं हूं मैं!!

किसी की याद हूं मैं, तड़प हूं मैं किसी की। किसी की फरियाद हूं मैं, चमकूं बन आंखों का मोती, हृदय की पीड़ा मुझमें सोती। फकत् आंसू न मुझे समझो, मानवता मुझमें समायी होती। भावों का हूं मैं बहता निर्झर। पीड़ा का हूं मैं उफनता समंदर, कभी खुशी बनकर हूं बहता। कभी छलकता तोड़ तटबंध, हूं मैं अश्रु ,आंसू और अश्क। कभी बनता विरह का अक्श, कभी खुशियों में बनूं शबनम। कभी ग़म में करता आंखें नम, कभी मिलन का बनूं साक्षी, अवसरों का हूं मैं आकांक्षी। सजूं आंखों में सबकी मैं, बना नयनों का गहना मैं। बड़े-बड़े काम कराता हूं, इंसान की परख कराता हूं। कभी पिघला देता हूं पत्थर, कभी तूफान भी लाता हूं। होता हूं मैं बड़ा मासूम, ममता की मचाता हूं धूम बच्चों की आंखों से छलकूं तो, मां की दुनिया ही जाती घूम। न हूं मैं किसी की मजबूरी, न हूं मैं किसी की कमजोरी। न बहाओ मुझे चोरी-चोरी, न बनाओ मुझे अपनी लाचारी। मैं इंसान की ताकत हूं, करता दिलों पर हुकुमत हूं। बनूं करुणा का बादल मैं, खुदा की अनमोल नियामत हूं। अभिलाषा चौहान स्वरचित मौलिक