विरह पर दोहे(प्रयास मात्र)

 विरह पर चंद दोहे(प्रयास मात्र)
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विरह वेदना बढ़ रही,नयना बरसें नीर।   
आत्मा बंदी गात में,कैसे पालें धीर।।
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विरह-अग्नि में जल रहा,प्रभु का दिया शरीर।
बंदी बनी है आत्मा, कैसे पहुंचें तीर।।
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दुनिया कारागार है,बंदी तन-मन होय।
माया में उलझा रहे,सत्य न समझे कोय।
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प्यासा प्राण पपीहरा,विरह सहा ना जाय।
मिलन घड़ी कब आएगी,नैन दर्श
कब पाय।।

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विरह-वेदना बढ़ रही, तन-मन लागी आग।
सुलग-सुलग मैं कोयला,कैसे फूटे भाग।।
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विरह बना बैरी सखी,मन का लूटा चैन।
सुध-बुध भूली मैं रहूं,दिन देखूं ना रैन।।
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न भावें सिंगार सखी,ना देखूं सुख-चैन।
प्रिय मेरे परदेशिया,विरह जलावै रैन।।
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अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. प्रयास अच्छा है पर दोहा मात्रिक छंद होता है मात्रा पर विशेष ध्यान दिया जाना जरूरी है।

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    1. जी, आदरणीया कुसुम दी
      अगर आप इनमें गलतियां बता दें,तो आगे मैं सुधार की कोशिश करूंगी।वैसे १३-१३(१-३)और
      ११-११(२-४) में लगाई हैं। हो सकता है कहीं गलती हो गई हो, मार्गदर्शन के लिए सादर आभार

      हटाएं
    2. प्रिय अभिलाषा बहन मैं भी मात्राएँ गिनने में काफी पिद्धी हूं बस मूझे कहीं कहीं कुछ शंका हुई आप किसी विशेषज्ञ से मशविरा लें हो सकता है आप का लिखा पुरा ठीक हो मैने बस सावधानी के नाते सलाह दी थी कि मात्रिक छंद में मात्राओं पर विशेष दृष्टि रखें क्योंकि अभी आपकी शुरुआत है तो सब कुछ आराम से निभा लोगे।
      ढेर सा स्नेह और शुभकामनाएं।

      हटाएं
    3. जी आदरणीया कुसुम दी सस्नेह,सादर

      हटाएं
  2. विरह-वेदना बढ़ रही, तन-मन लागी आग।
    सुलग-सुलग मैं कोयला,कैसे फूटे भाग।।..वाह ! बहुत सुन्दर सखी 👌👌

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  3. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, अभिलाषा दी।

    जवाब देंहटाएं
  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    १८ मार्च २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  5. विरह-अग्नि में जल रहा,प्रभु का दिया शरीर।
    बंदी बनी है आत्मा, कैसे पहुंचें तीर।।
    बहुत ही सुंदर, सखी

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  6. प्राण प्यासे दर्शन को,विरह सहा न जाए।
    मिलन घड़ी कब आएगी,नयन बड़े अकुलाए
    बहुत खूब....

    जवाब देंहटाएं

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