अश्कों को छुपाके
अपनी ही लबों पर मुस्कानो के पैबंद लगाके,
जी रहा हूं यार,अपने गमों को छिपाके।
दिल चाक-चाक है,अपनों के रहमो-करम से,
फिर भी मुस्कुराता हूं,अपने अश्कों को छुपाके।
जख्मों से तार-तार है दामन ये मेरा,
जख्मों को रखता हूं परदों में छिपाके।
उधड़ती गई ये जिंदगी,मिली जो ठोकरें,
पहन तो इसी को रहा हूं अभी रफू कराके।
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छिपाने की कोशिशें नाकाम हो रहीं,
फिर भी ना हारा हूं , हालातों से घबराके।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
(नोट-रेखांकित पंक्ति मुझे किसी ने दी थी कि
इस पर रचना बनाएं,तो यह रचना बनी,अगर इसके लिए किसी को आपत्ति हो तो क्षमाप्रार्थी हूं।)
जी रहा हूं यार,अपने गमों को छिपाके।
दिल चाक-चाक है,अपनों के रहमो-करम से,
फिर भी मुस्कुराता हूं,अपने अश्कों को छुपाके।
जख्मों से तार-तार है दामन ये मेरा,
जख्मों को रखता हूं परदों में छिपाके।
उधड़ती गई ये जिंदगी,मिली जो ठोकरें,
पहन तो इसी को रहा हूं अभी रफू कराके।
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छिपाने की कोशिशें नाकाम हो रहीं,
फिर भी ना हारा हूं , हालातों से घबराके।
अभिलाषा चौहान
स्वरचित
(नोट-रेखांकित पंक्ति मुझे किसी ने दी थी कि
इस पर रचना बनाएं,तो यह रचना बनी,अगर इसके लिए किसी को आपत्ति हो तो क्षमाप्रार्थी हूं।)
क्या खूब बयाँ की है आपने।।।।।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏
हटाएंसहृदय आभार
जवाब देंहटाएंअपनी ही लबों पर मुस्कानो के पैबंद लगाके,
जवाब देंहटाएंजी रहा हूं यार,अपने गमों को छिपाके।
बेहतरीन ।।।।।।
सहृदय आभार आदरणीय 🙏
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