अश्कों को छुपाके

अपनी ही लबों पर मुस्कानो के पैबंद लगाके,
जी रहा हूं यार,अपने गमों को छिपाके।

दिल चाक-चाक है,अपनों के रहमो-करम से,
फिर भी मुस्कुराता हूं,अपने अश्कों को छुपाके।

जख्मों से तार-तार है दामन ये मेरा,
जख्मों को रखता हूं परदों में छिपाके।

उधड़ती गई ये जिंदगी,मिली जो ठोकरें,
पहन तो इसी को रहा हूं अभी रफू कराके।
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छिपाने की कोशिशें नाकाम हो रहीं,
फिर भी ना हारा हूं , हालातों से घबराके।

             


अभिलाषा चौहान
स्वरचित

(नोट-रेखांकित पंक्ति मुझे किसी ने दी थी कि
इस पर रचना बनाएं,तो यह रचना बनी,अगर इसके लिए किसी को आपत्ति हो तो क्षमाप्रार्थी हूं।)



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