बोलता है ये तिरंगा

प्राण पण से जूझता नित वीर अर्पित कर जवानी शौर्य गाथा देख उसकी आज हमको है सुनानी।। बेड़ियों ने श्वांस जकड़ी चीख घुटती कह रही थी रक्त पानी बन गया जब पीर हर जन ने सही थी बोलता है ये तिरंगा फिर हुतात्मी सी कहानी।। आँख में अंगार धधका आग सीने में लगी जब हाथ में ले प्राण अपने शेर सा हुंकारता तब शत्रुओं को ही पड़ी थी बार-बार मुँह की खानी।। रंग बसंती मन लुभाए भाल पे रज है सुहाती देश है परिवार उनका देश उनकी देख थाती भारती की अस्मिता पे वार दी अपनी जवानी।। अभिलाषा चौहान स्वरचित मौलिक