बिंब कोई था पुराना


झाँकता है जब घरों में

याद का मौसम सुहाना

खेलते थे सुख जहाँ पर

प्रेम से मिलना मिलाना।


दीमकें ऐसी लगी फिर

नींव ही हिलने लगी थी

द्वेष दीवारें बना जब

दूरियाँ मन में जगी थी

बोझ बनते इन पलों को

चाहते थे सब भुलाना।


चीखते थे प्रश्न कितने

और उत्तर ही नहीं थे

आँख मूँदे सत्य से सब

भागते फिरते कहीं थे

पूछता दर्पण अकेला

बिंब कोई था पुराना।।


धूल छाई प्रीत पर तब

जाल माया ने बिछाया

स्वार्थ ने तोड़ा हृदय जब

रास फिर कुछ भी न आया

आग सुलगी लीलती सब

कौन जाने फिर बुझाना।।


अभिलाषा चौहान

स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. उत्तर
    1. रचना के मर्म को समझने के लिए सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" ( 2008...आज सूर्य धनु राशि से मकर राशि में...) पर गुरुवार 14 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!



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  3. सुन्दर प्रस्तुति।
    मकर संक्रान्ति का हार्दिक शुभकामनाएँ।

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    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
      मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐

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  4. बहुत सुंदर नवगीत सखी, हृदय स्पर्शी वेदनाएं मुखरित करता ।
    वाह!

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    1. सहृदय आभार सखी 🌹 सादर
      मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐

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  5. हर घर की है यही कहानी...
    नहीं बांधता नेह नींव को
    वेदना शब्द में जीवंत ही गए हैं
    सादर

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  6. सहृदय आभार 🌹 सादर
    मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं 💐💐

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  7. वाह!सखी ,दिल को छू गई आपकी रचना । मकर संक्रांति की हार्दिक शुभकामनाएँँ ।

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    1. सहृदय आभार सखी 🌹 सादर
      मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं 💐

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  8. वाह!!!
    बहुत ही सुन्दर भावपूर्ण नवगीत सखी!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी 🌹 सादर
      मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं 💐

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  9. उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
      मकर संक्रांति पर्व पर हार्दिक शुभकामनाएं 💐

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  10. बहुत ही भावभीनी रचना अभिलाषा जी!
    पूछता दर्पण अकेला
    बिंब कोई था पुराना!!
    कई प्रश्नों के जवाब कभी नहीं मिलते।

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