देख युद्ध जब ठहर गया
रणभूमि सा बना ये जीवन
स्वार्थ हृदय में लहर गया
घृणा-द्वेष की बसती बस्ती
प्रेम युक्त वह पहर गया।।
लोलुपता जब मन पर हावी
मार्ग पतन के खुल जाते
सद्गुण सारे होम हुए तब
नीति-न्याय कब बच पाते
मन में रावण-राम लड़े जब
संकट फिर से गहर गया
घृणा-द्वेष की बसती बस्ती
प्रेम युक्त वह पहर गया।।
अपनी-अपनी रेखा खींची
खाई और बनी गहरी
बंद कपाटों पर फिर आकर
चीख किसी की कब ठहरी
मानवता ने भरी सिसकियाँ
दानव का ध्वज फहर गया
घृणा-द्वेष की बसती बस्ती
प्रेम युक्त वह पहर गया।।
राख भले ही ठंडी हो पर
रहती उसमें चिंगारी
आशा मन में क्षीण शेष हो
सच्चाई फिर कब हारी
तीरों की टंकार सुनिश्चित
देख युद्ध जब ठहर गया
घृणा-द्वेष की बसती बस्ती
प्रेम युक्त वह पहर गया।।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
सादर समीक्षार्थ
अति सुंदर भावपूर्ण सृजन प्रिय अभिलाषा जी।
जवाब देंहटाएंसस्नेह।
सहृदय आभार सखी 🌹 सादर
हटाएंजी नमस्ते ,
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा शनिवार(१६-०१-२०२१) को 'ख़्वाहिश'(चर्चा अंक- ३९४८) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है
--
अनीता सैनी
सहृदय आभार सखी 🌹 सादर
हटाएंभावपूर्ण भावाभिव्यक्ति अभिलाषा जी ।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🌹🙏 सादर
हटाएंबेहतरीन रचना दी
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार बहना 🌹
हटाएंबहुत बहुत भावपूर्ण सुगठित रचना
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
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जवाब देंहटाएंलोलुपता जब मन पर हावी
मार्ग पतन के खुल जाते
सद्गुण सारे होम हुए तब
नीति-न्याय कब बच पाते
मन में रावण-राम लड़े जब
संकट फिर से गहर गया
घृणा-द्वेष की बसती बस्ती
प्रेम युक्त वह पहर गया।।..सुन्दर भाव भरी सारगर्भित कृति..
सहृदय आभार सखी 🌹 सादर
हटाएंअत्यंत प्रभावी लेखन ।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🌹 सादर
हटाएंरणभूमि सा बना ये जीवन
जवाब देंहटाएंस्वार्थ हृदय में लहर गया
घृणा-द्वेष की बसती बस्ती
प्रेम युक्त वह पहर गया।। भावपूर्ण, बहुत ही सुन्दर सृजन - -
रचना के मर्म को समझने के लिए सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
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