याद ने फिर छवि उकेरी


पुष्प सा तन आज महके

भ्रमर छेडें राग भेरी

धूप आँगन खेलती सी

याद ने फिर छवि उकेरी।


मोर सा मन नाचता है

सुन रहा आहट किसी की

प्रेम का प्यासा पपीहा

कर रहा चाहत उसी की

फिर महावर मेंहदी ने

बन खुशी खुशबू बिखेरी।


चाँद द्वारे पर खड़ा है

साथ तारे बन बराती

चाँदनी की ओढ़ चूनर

प्रीत बदली घिरी आती

महकती जूही अकेली

रात ढलती अब अँधेरी।


और सौरभ बह उठा फिर

प्राण खिलते आज ऐसे

मौन छेड़े रागिनी अब

बज उठे सब साज जैसे

खेलता सुख आज आँचल

पीर बहती है घनेरी।


अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. सार्थक और सुन्दर गीत।
    --
    गणतन्त्र दिवस की पूर्वसंध्या पर हार्दिक शुभकामनाएँ।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय 🙏 सादर
      आपको भी गणतंत्र दिवस की पूर्वसंध्या पर हार्दिक शुभकामनाएं 🙏🙏

      हटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद प्रवाह

देखूं आठों याम