बोलता है ये तिरंगा


प्राण पण से जूझता नित

वीर अर्पित कर जवानी

शौर्य गाथा देख उसकी

आज हमको है सुनानी।।


बेड़ियों ने श्वांस जकड़ी

चीख घुटती कह रही थी

रक्त पानी बन गया जब

पीर हर जन ने सही थी

बोलता है ये तिरंगा

फिर हुतात्मी सी कहानी।।


आँख में अंगार धधका

आग सीने में लगी जब

हाथ में ले प्राण अपने

शेर सा हुंकारता तब

शत्रुओं को ही पड़ी थी

बार-बार मुँह की खानी।।


रंग बसंती मन लुभाए

भाल पे रज है सुहाती

देश है परिवार उनका

देश उनकी देख थाती

भारती की अस्मिता पे

वार दी अपनी जवानी।।



अभिलाषा चौहान

स्वरचित मौलिक


टिप्पणियाँ

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (31-01-2021) को   "कंकड़ देते कष्ट"    (चर्चा अंक- 3963)    पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ-    
    --
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

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  2. उत्कृष्ट भावाभिव्यक्ति ।
    जय हिंद! जय भारत!

    जवाब देंहटाएं

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