यात्रा भव्यता से दिव्यता तक-३
आरती समाप्त होने के बाद जन-समूह जैसे एकत्र हुआ था वैसे ही धीरे-धीरे छंट गया।हम नौका से उतरकर बाबा विश्वनाथ के नवनिर्मित कारीडोर में पैदल चल पड़े मानव-निर्मित कारीडोर भक्तों से इस कदर भरा हुआ था कि जगह छोटी पड़ रही थी। आस-पास बड़ी-बड़ी वस्त्रों की दुकानें, खाने-पीने के स्थल,पूजा सामग्री और अपनी जीविका चलाने के लिए फुटपाथ पर रुद्राक्ष मालाएं, सब्जियां,फल,सजावटी सामान बेचने वालों की कोई कमी नहीं थी।पता चल रहा था कि इसे ही आर्थिक स्वतंत्रता कहते हैं। व्यक्ति अपनी स्थिति,योग्यता और परिस्थिति के अनुरूप जीवनयापन के साधन चुन सकता है।विकास ने उन संकरी गलियों को चौड़ा कर बाबा विश्वनाथ तक पहुंचने का मार्ग सुगम बनाया था तो लोगों को जीवनयापन के लिए साधन भी प्रयुक्त कराया था। हमें मंदिर में पहुंचने से पहले अपने इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस और जूते-चप्पल बाहर ही सुरक्षित स्थान पर रखने के लिए दुकानदारों ने अपनी-अपनी दुकानों में बने लाॅकर में सामान रखने के लिए घेरना प्रारंभ कर दिया था। यद्यपि मंदिर प्रांगण में भी यह सुविधा निशुल्क रूप से उपलब्ध है पर वहां तक पहुंचने से पहले ही आपको दुकानदार इस तरह समझा देत...