माउंट आबू यादगार पल
Mount abu राजस्थान का एकमात्र हिल स्टेशन है ।यह राजस्थान के सिरोही जिले में स्थित है।इस स्थान का अपना एक इतिहास है।यह पर्यटन की दृष्टि से तो महत्वपूर्ण है ही।धार्मिक दृष्टि से भी इसका अपना महत्त्व है
इतने सालों से हम सिर्फ माउंट आबू का नाम ही सुन रहे थे।इस बार सोचा कि घूम आते हैं। यहां पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी रेलवे स्टेशन Abu road है। यहां से आप टैक्सी,बस के द्वारा माउंट आबू पहुंच सकते हैं। अरावली पर्वतमाला के अर्बुदा पर्वत पर यह शहर बसा है, इसलिए इसका नाम अबू पड़ा।यह छोटा-सा शहर अपनी खूबसूरती से पर्यटकों का मन मोह लेता है।nakki झील इसका केंद्र बिंदु है।हम यहां अक्टूबर के पहले सप्ताह में पहुंचे थे।दो दिन हमें यहां रुकना था।मौसम भी हम पर मेहरबान था।घना कोहरा और सर्द हवाएं, रुक-रुक कर होती बारिश ने पहले तो हमें होटल के कमरे में बंद रहने को कहा,पर मौसम का लुत्फ तो उठाना था। hotel crystal inn जो नक्की लेक पर स्थित था बस कोई पच्चीस-तीस सीढ़ियां उतरकर हम नक्की लेक पर जा पहुंचे, यहां ऐसा लग रहा था कि जैसे बादल भी झील का भ्रमण करने आए हों
नौका विहार करते हुए नाविक ने हमें माउंट आबू की खासियत भी बताई और यह भी कि बारिश के दिनों में उनका व्यवसाय अधिकतर ठप्प ही रहता है और तेज गर्मी में भी पर्यटक कम ही आते हैं क्योंकि हिल स्टेशन होने के बाद भी यहां का तापमान बढ़ जाता है।
नौका विहार के बाद हम होटल लौट आए थे।खाना खाकर हमने विश्राम किया।तीन बजे हम बाजार घूमते हुए फिर नक्की झील जा पहुंचे।अब धूप निकल आई थी।टेड राॅक जाने के लिए अब सही समय था।हमने सीढ़ियां चढ़नी प्रारंभ की पर यह देखकर मन दुखी हो गया कि सीढ़ियां जगह-जगह से टूटी हुई थीं और वहां ना तो कोई सुरक्षा प्रहरी था और ना ही कोई यह देखने वाला कि यहां कितनी अव्यवस्था है।पहाड़ में सीढ़ियां चढ़ते हुए हमने जगह-जगह प्लास्टिक बोतल और पाॅलीथिन पड़ी हुई थी।गंदगी बढ़ाने में और प्राकृतिक सुंदरता नष्ट करने में हम भारतीयों की बराबरी कोई नहीं कर सकता। सीढ़ियां कई जगह इतनी खराब थीं कि सोच रहे थे कि हम आए ही क्यों....?
ऊपर पहुंचने के बाद हमने देखा कि पहाड़ का ऊपरी हिस्सा बिल्कुल चिकना और ढलानदार था। वहां सुरक्षा के लिए कोई रेलिंग या सुरक्षा का कोई इंतजाम नहीं था।प्रकृति प्रदत्त यह खूबसूरत जगह जो देखरेख के अभाव में उपेक्षित सी लग रही थी।इसके लिए सरकार तो जिम्मेदार है ही और जनता भी उतनी ही जिम्मेदार है।यदि ऊपर कोई दुर्घटना घट जाए तो मदद मिलने का कोई साधन वहां नजर नहीं आ रहा था।
ऊपर लोग सेल्फी ले रहे थे। पहाड़ के बिल्कुल किनारे पर जाकर,इस बात की चिंता किए बिना कि पैर फिसला तो क्या होगा...?अब नीचे उतरना था।जो चढ़ने से ज्यादा मुश्किल था।किसी तरह नीचे उतर आए पर मन दुखी था कि हम अपनी विरासत को सहेजना कब सीखेंगे....?कब हम गंदगी फैलाना बंद करेंगे...? पढ़े-लिखे लोग जब जानबूझ कर ऐसी गलतियां करते हैं तो मन विषाद ग्रस्त हो जाता है।खैर हम नीचे आ गए थे।मौसम काफी ठंडा हो गया था।हमने नक्की झील का चक्कर लगाया। करीबन चार से पांच किलोमीटर का चक्कर था।
क्रमशः
अभिलाषा चौहान




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