यात्रा भव्यता से दिव्यता तक-८

 गतांक से आगे 

हम अयोध्या का भव्य स्वरूप निहारते हुए लता मंगेशकर चौक आ पहुंचे थे। यहां पर स्वर साम्राज्ञी की स्मृति में विशालकाय अनुपम वीणा स्थापित है।यह दुनिया की सबसे बड़ी वीणा है।यह स्थान नया घाट के पास स्थित है।इसके आस-पास सुंदर पार्क बनाए जा रहें हैं।यह स्थान पर्यटकों की पसंद बन गया है और यह राम पथ और धर्म पथ को भी जोड़ता है ।इसके पास ही हनुमान जी की सुंदर और भव्य प्रतिमा स्थापित है। जिसे देखकर ऐसा लगता है कि वे अयोध्या की रक्षा कर रहें हो।इसके आस-पास सड़कों के दोनों ओर नव निर्मित दुकाने,होटल इत्यादि स्थापित हैं। यहां सुमधुर संगीत यानि वीणा की झंकार बजती रहती है। अयोध्या की पहचान में अब यह स्थान भी शामिल हो गया है। लोगों के लिए यह सेल्फी पोइंट बन गया है।


लता मंगेशकर चौक,अयोध्या 


लता मंगेशकर चौक अयोध्या 



 





लता मंगेशकर चौक से हम कार्ट से राम पथ स्थित अपने होटल आ गए थे।सरयू घाट का अद्भुत दृश्य और रामकथा का लेजर शो अब भी मन में दिव्यता का अनुभव करा रहा था।रात भर के विश्राम के बाद सुबह जल्दी ही आंख खुल गई। हमें ग्यारह बजे महर्षि वाल्मीकि इंटरनेशनल एयरपोर्ट के लिए निकलना था।समय था तो मन ने कहा कि चलो रामलला के दर्शन एक बार और कर लिए जाएं....भला रामलला के दर्शन की प्यास कभी बुझ सकती है....?

अब हमारे पास,पास तो था नहीं तो चल दिए आम भक्तों की तरह।आम भक्तों के लिए रास्ता दूसरा है। वहां भी एक बहुत ही प्राचीन मंदिर था "राज द्वार मंदिर"जो ऊंचाई पर स्थित है जहां चालीस-पचास सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है।यह मंदिर करीब छह सौ वर्ष पुराना है। यहां पर भी श्रीराम-जानकी की भव्य प्रतिमाएं स्थापित है और हनुमान जी की भी भव्य प्रतिमा हैं।




राजद्वार मंदिर ,अयोध्या



मंदिर में दर्शन कर हम पहुंचे रामलला के दर्शन के लिए, इसके लिए हमें काफी दूर से ही कतार में लगना पड़ा था। वास्तव में कतार में लगकर दर्शन का आनंद ही अलग होता है।यह कतार मंदिर के मुख्य प्रवेश द्वार से आपको मंदिर में प्रवेश कराती है तो रामलला के दर्शन का समय भी ज्यादा मिल जाता है। प्रवेशद्वार से ही रामलला की भव्य-दिव्य प्रतिमा का आकर्षण आपको मोहपाश में जकड़ लेता है। पलकें भी झपकना भूल जाती हैं।आखिर हमारे रामलला है ही अनूठे और अद्वितीय ।

वहां से दर्शन कर हम एक हाल में पहुंचे जो हमने पहले नहीं देखा था । यहां वेटिंग हाल है ,बैठने की अच्छी व्यवस्था है,साथ ही यहां निशुल्क व्यवस्था है लाॅकर की आप अपना इलेक्ट्रॉनिक सामान यहां रख सकते हैं। यहां पर शौचालय बने हुए हैं जो बिलकुल साफ-सुथरे और एयरपोर्ट की तर्ज पर बने हुए हैं।इस तरफ पार्क भी बन गए हैं जो बहुत ही सुन्दर हैं।यह रास्ता मंदिर परिक्रमा मार्ग के मुख्य प्रवेश द्वार पर निकलता है।

हमने थोड़ी सी शापिंग की और नाश्ता किया। होटल पहुंचे और चेक आउट किया।टैक्सी आ चुकी थी।टैक्सी वाले ने अयोध्या के विषय में बहुत कुछ बताया।यह भी कि पहले अयोध्या परिक्रमा मार्ग अतिक्रमण से ग्रस्त था
कच्ची टूटी-फूटी सड़क,कचरा और गंदगी के कारण लोगों को पैदल चलने में परेशानी होती थी लेकिन अब यह परिक्रमा आप देखिए कितना बढ़िया हो गया है और अब परिक्रमा करने वाले भी खुश होते हैं।यही तो है आधारभूत सुविधाएं,जन मानस को क्या चाहिए...? उसने कहा कि हाइवे के कारण उसकी कमाई अच्छी हो गई है,पहले कनेक्टिविटी नहीं थी अच्छी तो वह अयोध्या से बाहर अपनी गाड़ी नहीं ले जाता था,आज वह महीने में पांच-छह ट्रिप तो बाहर दूसरे राज्यों के कर लेता है।यही तो है विकास...... एयरपोर्ट आ गया था।वह बोला कि एयरपोर्ट का नाम ही सुने पहले लेकिन बना अब है ,जबसे यह एयरपोर्ट बना है हमारी आमदनी भी बढ़ी है और सही भी है।हमने अयोध्या में दक्षिण भारतीय लोगों को समूह में दर्शन करते और घूमते देखा। अयोध्या तक उनकी पहुंच आसान हुई क्योंकि इंफ्रास्ट्रक्चर अच्छा हुआ है।हाइवे,रेल और हवाई यात्रा ने उनके लिए मार्ग सुगम किया है।रहने के लिए धर्मशालाएं और होटल हैं और खाने के लिए होटल और ढाबे। यहां राम रसोई और सीता रसोई भी है जहां भक्तों को निशुल्क भोजन प्राप्त हो जाता है।

हम एयरपोर्ट के अंदर प्रवेश कर गए थे। एयरपोर्ट भी अत्यंत भव्य था।सभी सुविधाएं यहां उपलब्ध थीं।
महर्षि वाल्मीकि इंटरनेशनल एयरपोर्ट 

राम और हनुमान की भव्य तस्वीरें 

एयरपोर्ट वेटिंग एरिया 


यहां पर दक्षिण भारतीय लोग जो कल साथ घूम रहे थे।वो भी अपनी फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे।इस यात्रा ने मन को बहुत सारे प्रश्नों के उत्तर दिए। प्रयागराज काशी, अयोध्या ये सिर्फ नाम नहीं है।ये आधार स्तम्भ है हमारी सनातन संस्कृति के ,प्रतीक हैं हिंदुत्व की आस्था के,वैदिक ज्ञान के स्त्रोत हैं। ऋषि-मुनियों की तपोस्थली हैं। यहां की हवा में अध्यात्म की महक है, यहां विरासत की धूम है।यह स्थल पहचान हैं हमारी.... यहां आकर हृदय जहां आध्यात्मिकता की ओर उन्मुख होता है वहीं अपनी गौरवान्वित करने वाली पुरातन विरासत को देख मुग्ध होता है। यहां गंगा-यमुना-सरस्वती का संगम है तो कण-कण में शिव हैं....राम हैं।शिव के बिना संसार और राम के बिना जीवन निरर्थक है।जीवन को अर्थ यात्राओं से मिलता है।हमने इस यात्रा में पाया आत्मिक आनंद वो आनंद जो अलौकिक है, अनिर्वचनीय है।


समाप्त 


अभिलाषा चौहान 






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