यात्रा भव्यता से दिव्यता तक-५

महात्मा गांधी काशी विद्यापीठ परिसर में स्थित भारत माता मंदिर अपने आप में अनूठा है। यहां आपको अखंड भारत का त्रि-आयामी मानचित्र देखने को मिलता है।इसका निर्माण डाक्टर शिवप्रसाद गुप्त ने सन् 1936 में करवाया था। राजस्थान के संगमरमर से इस मानचित्र को इतनी बारीकी से उकेरा गया है कि मन नत मस्तक हो जाता है उन शिल्पकारों के प्रति जिन्होंने इस मानचित्र में हर बात का ध्यान रखा है। हिमालय की विशाल पर्वत श्रृंखला हों या सागर की गहराई, इसमें पर्वतों की ऊंचाई समुद्र तल से इसकी गहराई से वैसे ही मापी गई है जैसी वस्तुत है ।ऐसा हमें गाइड ने बताया। वहां नीचे उतरकर जब इस मानचित्र को देखते हैं तो एवरेस्ट की ऊंचाई अलग से ही दिखाई दे जाती है।

भारत माता मंदिर 



इस अद्भुत मंदिर की भव्यता को देख हम भारतीय उप महाद्वीप की भव्यता में खो गए थे।कितना विशाल था हमारा भारत जो बाद में खंडों में विभक्त हो गया।मन गर्व से भर उठा था।

सारनाथ 

इसके बाद हम सारनाथ पहुंच गए थे। भगवान बुद्ध ने अपना प्रथम उपदेश यहीं दिया था। यहां अशोक के द्वारा स्थापित धम्म स्तूप भी है जिसे अशोक स्तंभ के रूप में जाना जाता है। आक्रांताओं ने इस स्थान को भी तहस-नहस कर दिया था पर पुरातत्ववेत्ताओं ने इस प्राचीन नगरी  उत्खनन के द्वारा फिर खोज लिया।विशाल क्षेत्र में फैला हुआ यह स्थान और बहुत ही सुन्दर,शांत और हरितिमा से भरपूर है। यहां आकर मन प्रफुल्लित हो जाता है। सारनाथ के विषय में कहने को बहुत कुछ है।इसका अपना इतिहास है।बौद्ध धर्म के प्रचार-प्रसार में इस स्थान का महत्व अनिर्वचनीय है।


थाई मंदिर में बुद्ध प्रतिमा 



सारनाथ पुरातात्विक स्थल 






सारनाथ में थाई शैली में बना भगवान बुद्ध का एक मंदिर है। जहां भगवान बुद्ध की ध्यान में लीन प्रतिमाएं 
है। यहां अजीब सी शांति है चाहे कितने ही पर्यटक हों पर वह शांति तन-मन को छू जाती है। यहां ध्यान केंद्र भी है।इस स्थान की भव्यता अनुपम और अनिर्वचनीय है। यहां भगवान बुद्ध की एक बहुत बड़ी प्रतिमा है जो खड़े हुए रूप में है।ज्ञान-ध्यान का केन्द्र है यह स्थली।
तीन बज चुके थे।अब हमें वापस लौटना था क्योंकि अब हमें नमो घाट जाना था।इसका निर्माण अभी हुआ है।गंगा के घाटों में नमो घाट सबसे नवीनतम है।करीब दो घंटे बाद हम नमो घाट पर थे। अद्भुत,अद्वितीय।
नमो घाट पर हर सुविधा मौजूद थीं।टैक्सी वाले भैया ने हमें बताया कि कुछ साल पहले यहां झुग्गी-झोपड़ी वालों का निवास था। गंगा मां के निर्मलीकरण और सौंदर्यीकरण के दौरान उनका पुनर्वास कहीं ओर कराया गया और अब यह स्थान सबसे सुंदर और खुला-खुला है। यहां गंगा मां को नमन करते हुए हाथ बने हैं।



नमो घाट 






नमो घाट के बाद हम नंदी चौक वापस आ गए थे।अब वे काशी की गलियां हमें अपनी लगने लगीं थीं।उनके अपनेपन ने हमें अपना बना लिया था।अभी तो हम काशी को जान भी नहीं पाए थे।काशी को जानने के लिए वहां रहना जरूरी है।एक या दो दिन तो पल जैसे लगते हैं।मन पछता रहा था कि क्या सोचकर दो दिन का ही प्लान बनाया।अभी तो बहुत कुछ बाकी था।बाबा की नगरी में।


क्रमशः 

अभिलाषा चौहान 


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