अनुभव - कुडलियाँ छंद









अनुभव से बढ़कर नहीं,कोई सच्चा ज्ञान।

ठोकर खाकर सीखले,वो होता इंसान।।

वो होता इंसान,सत्य को जो पहचाने।

दुर्गुण सारे त्याग,सुपथ पर चलना जाने।।

कहती अभि निज बात,मिले तब सच्चा वैभव।

पल-पल मिलती सीख,उसे कहते हैं अनुभव।।



अनुभव जिनके पास हो,वो जन गुरू समान।

भले-बुरे के भेद को,पल में लें पहचान।।

पल में लें पहचान, बात सब उनकी मानो।

कड़वी लगती सीख,भले ही झूठी जानो।

कहती अभि निज बात,सीख से मिलता वैभव।

आए विपत्ति काल,काम आए तब अनुभव।।



अनुभव जीवन को सदा,देता सच्ची राह।

कर्म करो यह जानकर,होगी पूरी चाह।

होगी पूरी चाह,स्वप्न भी होंगे पूरे।

लगती कड़वी सीख,घिरे घनघोर अँधेरे।

कहती अभि निज बात,अगर पाना है वैभव।

समझो जीवन सार,वही होता है अनुभव।।


अभिलाषा चौहान 



टिप्पणियाँ

  1. वाह!!!
    अद्भुत एवं लाजवाब 👌👌

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  2. वाह्ह अति सुंदर,बेहतरीन।
    सादर
    ------
    जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना मंगलवार ३० जून २०२५ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. कृपया,आमंत्रण में 1 जुलाई पढ़ें।

      हटाएं
    2. जी, सहृदय आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणादायक है।सादर

      हटाएं
    3. जी, सहृदय आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणादायक है।सादर

      हटाएं
  3. वाह ! बहुत सुंदर प्रेरक कुंडलियाँ

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणादायक है।सादर

      हटाएं
  4. अनुभव ही अनुभव 👌👌बहुत सुंदर कुंडलिया हैं अभिलाषा जी. चाहकर भी मैं कभी ये विधा सीख नहीं पाई. पर आप सभी लिखते हैं तो अच्छा लगता हैं❤️

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  5. अभिनव ज्ञान प्रदान करती और काव्य रस व सौंदर्य का पान करती सुंदर रचना !

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