अंबे तुम्हें मनाके..



"माता का भजन"


तर्ज़-दिल में तुझे बिठा के


टेक-


अंबे तुम्हें मना के,

कदमों में सर झुका के।

फरियाद मैं करूँगा,

ले दे कर कुछ टरूँगा ।।


अंतरा-


विघ्न हरण मंगल करणी,

कर दो कँठ पपइया ।

गाना बजाना आए ना हमको, सदा दास गवैया ।।


तो.-


हृदय में लूँ बिठा के ,

कदमों में सर झुका के।

फरियाद में करूँगा,

ले दे कर कुछ टरूँगा ।।

अंबे.........


अंतरा-


तेरे भरोसे साज उठाया, 

सुर सम ताल लखाजा ।

सत्संगत के सागर में अंबे,

बिगड़ी आज बना जा ।।


तो-


यह राग यूं जमा के,

कदमों में सर झुका के।

फरियाद में करूँगा ,

ले दे कर कुछ टरूँगा ।।

अंबे.............


अंतरा-


ब्रह्मा विष्णु शिव सनकादिक,

तेरा भेद नहीं पावैं ।

पाप का भार बढ़े पृथ्वी पर,

अंबे तुम्हें मनावै ।।


तो-


संकट में लो बचा के ,

कदमों में सर झुका के।

फरियाद में करूँगा ,

ले दे कर कुछ टरूँगा ।।

अंबे.........


अंतरा-


जगत तारिणी तू महाकाली ,

नगरकोट की ज्वाला ।

कालों की महाकाली तू ही है, खोल दे घट का ताला ।।


तो-


कुंजी पर ध्यान करके ,

कदमों में सर झुका के।

फरियाद में करूँगा ,

ले दे कर कुछ टरूँगा।।

अंबे............


मेरे स्व.बाबा कुंअर सिंह भदौरिया 'कुंजी'की डायरी से...


अभिलाषा चौहान 

टिप्पणियाँ

  1. बहुत बहुत भजन
    शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीया आपको भी शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं सादर

      हटाएं
  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 03 अक्टूबर 2024 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सहृदय आभार आदरणीय आपको शारदीय नवरात्र की हार्दिक शुभकामनाएं सादर

      हटाएं
  3. बहुत बहुत सुन्दर बहुत बहुत मधुर

    जवाब देंहटाएं

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