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हिंदी दिवस , हिंदी और हम

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कल चौदह सितंबर है।यह दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।इस दिन सबको याद आता है कि हमारी मातृभाषा हिंदी है और राजकाज की भाषा भी हिंदी है पर क्या वास्तव में हिंदी को उसका स्थान मिला है..?? जिस भाषा को राष्ट्र भाषा के पद पर सुशोभित होना चाहिए था, वह आज भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है,या यों कहें कि अब तो उसके अस्तित्व पर भी संकट विराजमान हो गया है।हिंदी का शुद्ध रूप अब कहां दिखाई देता है...? खिचड़ी भाषा के रूप में प्रचलित हिंदी अपना सौंदर्य खोती जा रही है।इसके समानांतर एक और भाषा चल रही है जिसे" हिंग्लिश "कहा जाता है।देश के किसी भी तबके का व्यक्ति जब भावों को अभिव्यक्त करता है तो उसके बोलने में जो भाषा प्रयुक्त होती है,वह है" हिंग्लिश " "हिंग्लिश "में हिंदी और अंग्रेजी शब्दों का समावेश ऐसे हो गया है कि हम चाहकर भी अंग्रेजी शब्दों को हटा नहीं पाते क्योंकि हम वही काम करते हैं जो आसान लगता है,जनमानस पर साहित्य का,सिनेमा का बहुत प्रभाव पड़ताहै।आजकल जो कहानियां, कविताएं, चलचित्र हमारे सामने आ रहे हैं, उसकी विषयवस्तु और संवादों में आप स्पष्ट देख सकते हैं क

कुछ खरी-खरी...!!

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जीवन अपराधों में जकड़ा, हत्या बलात्कार सुन लूट। शासन के ढीले पंजों से, अपराधी क्यूँ जाता छूट।। न्याय बिके बाजारों में जब, पीड़ित घिसता जूते रोज। अंधा है कानून यहाँ पर, खोता जाता उसका ओज।। भ्रष्टों की है मौज यहां पर, सच्चों को ठुकराते लोग। आदर्शों की चिता जलाकर, खाते रहते छप्पन भोग ।। सड़कों पर गड्ढे कितने हैं, गड्ढों में ही जीते लोग। रोजी रोटी की चिंता में  पाले जाते कितने रोग।। झूठ बिके महँगे दामों में , सच बेचारा बना कबाड़। सच की राह चलें जो राही, उनके केवल बचते हाड़।। वैमनस्य की आग जलाकर, कैसे तापें अपने हाथ। कूट रहे हैं चांदी वो ही, जो देते हैं इनका साथ ।। देश छूटता पीछे इनसे, कुर्सी तक है इनकी दौड़। छलछंदों के चक्रव्यूह का, नहीं सूझता कोई तोड़।। आम खास बनते ही देखो, भूले अपनी वो बुनियाद । स्वार्थ- शक्ति ,सत्ता में डूबा, उसको किसकी रहती याद ।। जंजालों में उलझा जीवन, चिंता बैरी दुख भरपूर। महंगाई है नाच नचाती, आम आदमी है मजबूर।। शिक्षा महंगी नहीं काम की, बेरोजगार हैं भरमार । सपने मिट्टी मिलते जिनके, जीवन से वह माने हार।। लीपापोती करने वाले , नहीं मानते अपनी खोट। जीवन जीना होता मुश्कि

गणेश वंदना

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गीत-"गणेश वंदना" तर्ज़ -यशोमति मैया से पूछे... ********************* टेक- तेरे नाम की देवा ,रटते हैं माला। नजरें मेहर की करदो, गौरी के लाला।। अंतरा- सबसे पहले देवा, पूजा होय तुम्हारी। ज्ञान और बुद्धि के, तुम तो भंडारी।। कृपा निधान करो, उर में उजियाला। खोलो घट का ताला...।। नजरें मेहर की कर दो.... अंतरा- एकदंत दयावंत, चारभुजा धारी। माथे सिंदूर सोहे ,मूसे की सवारी।। लंबी है सूंड सुंदर, बदन विशाला। रूप है निराला।। नजरें मेहर की करदो.... अंतरा- बांझों की गोद भर दे, निर्धन को माया। अंधों को आंख देते ,कोढ़ी को काया।। तुमसा न दाता कोई ,जग प्रीत पाला। सुनो दीनदयाला।। नजरें मेहर की कर दे.... अंतरा- तैंतीस कोट दैवा ,पार नहीं पावें।  महिमा तुम्हारी हम, कहां तक गावें।। कुंजी गुरु के चरणों, मस्तक डाला। रख दी जो बाला।। नजरें मेहर की कर दो गौरी के लाला। तेरे नाम की देवा रटते हैं माला।। यह गीत मुझे मेरे बाबा स्व श्री "कुंअर सिंह जी" की डायरी में मिला।वे सत्संग के शौकीन थे।फिल्मी गानों की तर्ज पर भक्ति गीत और कीर्तन लिखा करते थे। पुराने कागजों को तलाशते हुए उनकी कीर्तन की काॅपी हाथ ल

डमरू घनाक्षरी छंद

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           डमरू घनाक्षरी छन्द           अमात्रिक छंद ********************** छंद विधान - डमरू घनाक्षरी छंद 32 वर्ण होते हैं । इसमें समतुकांत चार चरण होते हैं।इसकी प्रत्येक पंक्ति में 16-16 वर्ण होते हैं।इन दोनों के योग से प्रत्येक चरण में 32 वर्ण होते हैं।16, 16 वर्णों पर यति अनिवार्य  8, 8, 8, 8 पर यति उत्तम मानी गई है। ध्यान देने योग्य बात - इसके सभी वर्ण लघु तथा मात्रा रहित होने चाहिए। इस घनाक्षरी में अकारांत शब्दों का प्रयोग मान्य होता है। लय और प्रवाह मुख्य।वर्ण  संयोजन ---   2 2 2 2  3 3 2   2 3 3    -: *डमरू घनाक्षरी छंद* :-      ********************  1. नटखट मत बन,सरल सरस मन। सजग सहज रह,यह जग उपवन। सतत मनन कर,पथ पर पग धर। सपन नयन भर,रख बस यह धन।  तरल हृदय रख,सजल नयन लख। पर जन उर बस,नत कर यह तन। अमल कमल सम,अचल अटल दम।। हर पल हर क्षण,मलय पवन बन।। **********""********** 2. हर हर मन हर,दरस नयन भर। सरस सहज वह,अलख निरख मन।। अटक भटक मत,उर मन कर  रत। भजन सतत कर,सत पथ गह जन।। कपट तमस सब,भव मद तज अब। प्रणय सुमन धर,चरण कमल धन।। अचरज मत कर, कण-कण हर-हर। सच वह भ्रम जग,लगन मगन तन।