हिंदी दिवस , हिंदी और हम





हिंदी दिवस और हम




कल चौदह सितंबर है।यह दिन हिंदी दिवस के रूप में मनाया जाता है।इस दिन सबको याद आता है कि हमारी मातृभाषा हिंदी है और राजकाज की भाषा भी हिंदी है पर क्या वास्तव में हिंदी को उसका स्थान मिला है..??


जिस भाषा को राष्ट्र भाषा के पद पर सुशोभित होना चाहिए था, वह आज भी अपने अस्तित्व के लिए संघर्षरत है,या यों कहें कि अब तो उसके अस्तित्व पर भी संकट विराजमान हो गया है।हिंदी का शुद्ध रूप अब कहां दिखाई देता है...? खिचड़ी भाषा के रूप में प्रचलित हिंदी अपना सौंदर्य खोती जा रही है।इसके समानांतर एक और भाषा चल रही है जिसे" हिंग्लिश "कहा जाता है।देश के किसी भी तबके का व्यक्ति जब भावों को अभिव्यक्त करता है तो उसके बोलने में जो भाषा प्रयुक्त होती है,वह है" हिंग्लिश "


"हिंग्लिश "में हिंदी और अंग्रेजी शब्दों का समावेश ऐसे हो गया है कि हम चाहकर भी अंग्रेजी शब्दों को हटा नहीं पाते क्योंकि हम वही काम करते हैं जो आसान लगता है,जनमानस पर साहित्य का,सिनेमा का बहुत प्रभाव पड़ताहै।आजकल जो कहानियां, कविताएं, चलचित्र हमारे सामने आ रहे हैं, उसकी विषयवस्तु और संवादों में आप स्पष्ट देख सकते हैं कि अंग्रेजी वाक्यांशों और शब्दों की भरमार है...कई बार तो ऐसा लगता है कि हम हिंदी का नहीं अंग्रेजी का चलचित्र देख रहे हैं या उसमें रचा साहित्य पढ़ रहे हैं।

दूरदर्शन के आगमन के पश्चात जहां लोगों को वैश्विक सूचनाओं को प्राप्त करने की सुविधा प्राप्त हुई, वहीं मनोरंजन के सहज साधन भी उपलब्ध हुए...जो प्रतिदिन दूरदर्शन पर प्रसारित कार्यक्रमों को देखता है,वह वहां से बहुत कुछ सीखता भी है और जानता भी है। वहां प्रयुक्त की जाने वाली भाषा व्यवहार में अपने-आप उतर आती है,यह चिंता का विषय है कि अनपढ़ लोग भी आज "हिंग्लिश"के प्रयोग से अछूते नहीं हैं क्योंकि यह हमारे बोलचाल का अंग बन गई है।बोलने वाले को भले ही उस शब्द का अर्थ ना पता हो,पर चूंकि यह व्यवहार में प्रचलित है इसलिए वह बोलता है,कितनी हास्यास्पद स्थिति है कि कहां तो हम "हिंदी भाषा"को उसका पद दिलवाने की बात करते हैं,उसके प्रचार-प्रसार के लिए सन् १९५३ से लगातार "हिंदी दिवस"मनाते आ रहें हैं तो दूसरी और हमने एक ऐसी भाषा को उसके प्रतिद्वंद्वी के रूप में खड़ा कर दिया है जो कि "हिंदी के संघर्ष" में बाधा उत्पन्न कर रही है,यह सपना ही है कि हिंदी को कभी उसका वास्तविक सम्मान मिलेगा ?


राजकाज की भाषा हिंदी होगी..?सन् १९४९ से ही केंद्र सरकार की आधिकारिक भाषा हिंदी को घोषित कर दिया गया था पर क्या ऐसा हुआ नहीं....?दोष अहिंदी भाषियों पर मढ़ा गया लेकिन हिंदी भाषियों ने क्या किया...?क्या वास्तव में उनके मन में इच्छा या दृढ़ संकल्प था कि हम हिंदी को उसका पद या सम्मान दिलवायेंगे...? 


यदि ऐसा होता तो वे अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग हिन्दी भाषा में नहीं करते लेकिन अंग्रेजी किसी ना किसी रूप में सामाजिक प्रतिष्ठा से जुड़ी है और इसलिए उसके शब्दों को बोलचाल में प्रयुक्त कर" हिंग्लिश "को जन्म दे दिया।हर भाषा का अपना महत्व और सौंदर्य होता है, भाषाओं को सीखना और बोलना बुरा नहीं है पर उन्हें मिलाकर खिचड़ी बना देना बुरा है।भाषा परिवर्तनशील होती है,कालखंड के प्रभाव से उसका स्वरूप बदलता है और बोल-चाल की नई भाषा प्रचलित हो जाती है,इस तरह से"हिंग्लिश प्रचलन में आ गई। लेकिन क्या "हिंग्लिश"का प्रयोग करके हम वास्तव में" हिंदी दिवस "मनाने के अधिकारी हैं...?क्या वास्तव में हम कभी "हिंदी भाषा"को उसका सम्मान दिला पायेंगे जब हमें यही नहीं पता कि आखिर शुद्ध हिंदी का स्वरूप क्या है....? हिंदी पखवाड़े के तहत आयोजित कार्यक्रमों में भी आपको "हिंग्लिश "का ही प्रयोग मिलेगा..!!आज की भावी पीढ़ी को कहां पता कि वे जो बोल रहें हैं, पढ़-लिख रहें हैं वो हिंदी भाषा नहीं बल्कि 'हिंग्लिश 'है।कैसे बचा पाएंगे वे हिंदी भाषा का मान..?कैसे पाएगी वह अधिकार ?हम बस 'हिंदी दिवस "मनाते रहेंगे और हिंदी भाषा छायावादी रचनाकारों की रचनाओं में सिमट कर रह जाएगी....!! 


हम हर हाल में खुश रहने वाले लोग हैं।हम हर त्योहार पूरे जोश से मनाते हैं। विशेष रूप से निर्धारित किए दिवसों पर कार्यक्रम आयोजित करते हैं, बढ़-चढ़कर हिस्सा लेते हैं और हमारे कर्तव्य की इतिश्री हो जाती है।हम हिंदी दिवस को जोर शोर से मनाकर हिंदी के प्रति अपनी आस्था अभिव्यक्त कर देते हैं पर करते कुछ नहीं...आज 'हिंग्लिश' बोलचाल की भाषा है और बोल-चाल की भाषा ही कालांतर में साहित्य की भाषा बन जाती है फिर कोई दूसरी भाषा प्रचलित होगी, जैसे-जैसे वैश्विक समुदाय से हमारा संपर्क बढ़ेगा, हिंदी में हर भाषा के शब्दों का प्रयोग होने लगेगा और हम फिर भी हिंदी दिवस मनाएंगे क्योंकि हम एक यही काम अच्छे से कर पाते हैं।


     मनहरण कवित्त-भाषा


निज भाषा का मान हो,उन्नति पर ध्यान दो। 

भाषा नित फूले-फले,काम ऐसा कीजिए।।


रूप, रस, छंद, बंध, साहित्य की उड़े गंध।

शब्द शब्द हो प्रभावी,ऐसा उसे सींचिए।।


मधुर मृदुल वाणी,विश्व में नहीं है सानी।

ज्ञान की बहाए धारा,डुबकी ले लीजिए।।


मातृभाषा ये हमारी,लगे सदा हमें प्यारी।

प्रचार-प्रसार कर, योगदान दीजिए।।


अभिलाषा चौहान 



टिप्पणियाँ

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द सोमवार 14 सितंबर 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !

    जवाब देंहटाएं
  2. उत्तर
    1. आपको भी हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय सादर

      हटाएं
  3. उत्तर
    1. हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सहृदय आभार सादर

      हटाएं
  4. हिन्दी की दशा, दिशा दिखाता सुंदर आलेख

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. आपको हिंदी दिवस पर हार्दिक शुभकामनाएं आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सहृदय आभार सादर

      हटाएं
  5. अभिलाषा जी, विश्व की उन्नत भाषाओँ ने दूसरी भाषाओँ के शब्दों को आत्मसात करने में कभी संकोच नहीं किया है.
    किसी भी भाषा में लचीलापन और सुग्राहयता उसे अधिक व्यापक तथा लोकप्रिय बनाते हैं.
    आप किसी भी प्रामाणिक अंग्रेज़ी शब्दकोश को देखिए. उसमें आपको हज़ारों शब्द लैटिन, ग्रीक, फ़्रेंच, जर्मन के ही नहीं, अनेक शब्द अरबी, फ़ारसी तथा भारतीय भाषाओँ के मिल जाएंगे.
    हमारी बोलचाल की भाषा में विदेशी भाषा के शब्दों का प्रयोग निषिद्ध नहीं होना चाहिए.
    हमारी वेशभूषा, हमारा खानपान, हमारी पारिवारिक मान्यताएं, हमारे रीतिरिवाज आदि सभी में विदेशी प्रभाव व्याप्त है.
    आवश्यकता इस बात की है कि हम हिंदी की आत्मा को न बदलने दें, भले ही उसका चोला थोडा-बहुत बदल जाए.

    जवाब देंहटाएं
  6. जी, आदरणीय भाषा के विकास के लिए बदलाव जरूरी है पर हिंदी के वास्तविक सौंदर्य को बनाए रखना भी बहुत जरूरी है।हिंदी भाषा में विदेशी भाषाओं के शब्दों को आत्मसात करने की व्यापक क्षमता है इससे उसका शब्दकोश समृद्ध होता है पर इससे हिंदी का रूप तो परिवर्तित होता ही है।बस हमें यही ध्यान रखना है कि कहीं हिंदी अपना स्वरूप ना खो बैठे।आपकी प्रतिक्रिया मुझे सदैव उत्साहित करती है सादर 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद प्रवाह

देखूं आठों याम