कैसे अजब नजारे हैं
बदले-बदले इस मौसम के
रंग-ढंग न्यारे हैं
कैसे अजब नजारे हैं
धोरों में जब बहती नदियां
नदियों के तन सूखे
खेत करे मछली अठखेली
और सरोवर भूखे
सड़कों पर चलती नावें
दिन दिखते तारे हैं
कैसे अजब नज़ारे हैं
पनघट घर के भीतर आया
तैर रहे सब बासन
कारागार से इस जीवन पर
बादल करते शासन
डूब चले सुख साधन सारे
जो लगते प्यारे हैं
कैसे अजब नजारे हैं
सूख चले आंखों के आंसू
कौन सुने अब किसकी
आंख मूंद कर बैठा शासन
जीवन भरता सिसकी
गड्ढों में खोए विकास को
ढूंढे बेचारे हैं
कैसे अजब नजारे हैं।
बूंद -बूंद को तरसे प्राणी
बूंद बनी है बैरन
कोस रहा क्यों बैठा-बैठा
बूंद सत्य ज्यों जीवन
सागर में मिलना निश्चित है
सब भ्रम के मारे हैं
कैसे अजब नजारे हैं
अभिलाषा चौहान
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