मनहरण घनाक्षरी छंद - भाव मन के
"मन हरण घनाक्षरी छंद"
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विधान-- "मनहरण घनाक्षरी"तो छंद वर्णिक छंद है।इसमें मात्राओं की नहीं,वर्णोंअर्थातअक्षरों की गणना की जाती है।8-8-8-7वर्णों पर यति होती है अर्थात अल्प विराम का प्रयोग होता है। चरण (पंक्ति) के अंत में लघु-गुरु होना अनिवार्य है।इस छंद में भाषा के प्रवाह और गति पर विशेष ध्यान दिया जाता है।गेयता इसका गुण है।
छंद का नामकरण 'घन' शब्द पर किया गया है।जिसके हिंदी में चार अर्थ होते हैं-
1. मेघ/बादल,
2. सघन/गहन,
3. बड़ा हथौड़ा
4. किसी संख्या का उसी में तीन बार गुणा हैं।
छंद में चारों अर्थ प्रासंगिकता सिद्ध करते हैं। घनाक्षरी में शब्द प्रवाह इस तरह होना चाहिए कि मेघ गर्जन की तरह निरंतरता की प्रतीति हो. घनाक्षरी में शब्दों की बुनावट सघन होती है जैसे एक को ठेलकर दूसरा शब्द आने की जल्दी में हो.घनाक्षरी पाठक / श्रोता के मन पर प्रहार सा कर पूर्व के मनोभावों को हटाकर अपना प्रभाव स्थापित कर अपने अनुकूल बना लेनेवाला छंद है।
१.
"वर्तमान स्थिति "
जोड़ तोड़ गठ-जोड़,जन हित
अब छोड़।
जाति धर्म भेदभाव,विष बीज बोइए।।
देश हित मत देख,सत्ता स्वार्थ खींच रेख।
बैरी संग प्रीत कर,चैन नींद सोइए।।
ठगी लूट दुराचार,महंगाई भरमार।
आम जन त्रस्त रहे,आप मत रोइए।।
देश प्रेम ताक पर, नीति-रीति खाक कर।
आम जन लड़ें भिड़ें,आप खुश होइए।।
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२.
"स्थिति में बदलाव "
प्रेम सदभाव पले,साथ सब मिल चले।
जीवन का पुष्प खिले ,बीज ऐसा चाहिए।।
बो रहे बबूल सब,वृक्ष सारे काट अब।
जैसे बीज बोये जाएँ, फल वैसा खाइए।।
नेह घट रीत रहा,धरा कंठ सूख रहा।
प्रीत पथ काँटे उगे,कैसे सुख पाइए।।
प्रकृति की बात सुन,विनाश की बजे धुन।
चेतना के बीज अब,मन में उगाइए।।
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३.
"भक्ति मार्ग "
नटखट नंदलाल ,सुंदर सलोना बाल।
अनोखी अनूप छवि,उर में बसाइए।।
देवकी यशोदा मात,नंद वसुदेव तात।
गोपी ग्वाल संग साथ,देख सुख पाइए।।
लीलाधर लीला करें,रोग कष्ट सारे हरें।
अधर्म का करें नाश,नित गुण गाइए।।
बांसुरी की छेड़ें तान, द्रोपदी का रखा मान।
गीता में जीवन ज्ञान, ध्यान तो लगाइए।।
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४.
"क्षमा याचना"
हे नटवर नागर ,तुम भक्ति के सागर।
अज्ञानी पापी हैं हम, कैसे तर पाएंगे।।
दीनबंधु दुखहर्ता,सृष्टि के हो तुम कर्ता।
माया में हम अटके, ठोकरें ही खाएंगे।।
रीति नीति जाने नहीं,प्रीति प्रेम माने नहीं।
पेट की ही चिंता करें,डूब मर जाएंगे।।
पाप-पुण्य भेद नहीं,लक्ष्य कर्म ज्ञान नहीं।
मद मोह जाल फंसे, तुम्हें कैसे ध्यायेंगे।।
अभिलाषा चौहान
बहुत बढ़िया सृजन। तीनों छंद अर्थ पूर्ण और संदेशात्मक है।
जवाब देंहटाएंसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २० सितम्बर २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सहृदय आभार श्वेता जी, आपकी प्रतिक्रिया पाकर सृजन सार्थक हुआ सादर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंवाह!सखी अभिलाषा जी ,बेहतरीन सृजन!
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंबहुत बहुत सुन्दर सरस और श्लाघनीय।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंविधा विधान के साथ लाजवाब घनाक्षरी ।
जवाब देंहटाएंवाह!!!
सहृदय आभार सखी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर
हटाएंबहुत खूब सभी छंद बेहद शानदार हैं...साथ ही घन व घनाक्षरी को लेकर महत्वपूर्ण जानकारी भी...अभिलाषा जी हम तो साइंस के स्टूडेंट रहे, फिर बॉटनी के हो गये, सो 'घन' का मतलब गुणा-भाग में ही ढूढ़ते रहे...
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार अलकनंदा जी
हटाएंआपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है सादर ❤️❤️❤️❤️
बहुत ही सुंदर कहा।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी सादर आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए प्रेरणास्रोत है
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