संकट लगते छुई-मुई

पीड़ा की गगरी भरकर के जीवन की शुरुआत हुई अंगारों पर लोट-लोट कर संकट लगते छुई-मुई। उद्वेलित हो कहती लहरें रूकना अपना काम नहीं तूफानों को करले वश में नौका लगती पार वही। सागर से चुनता जो मोती प्यासी जिसकी ज्ञान कुईं। अंगारों पर-------------।। कर्म तेल की जलती बाती दीपक का तब मान यहाँ सुख-शैया के सपने देखे उसकी अब पहचान कहाँ उड़ता फिरता नीलगगन में औंधे मुँह गिर पड़ा भुंई। अंगारों पर --------------।। पग के छाले जिसे हँसाए आँसू जिसके मित्र बने। ओढ़ दुशाला हिय घावों का उसने चित्र विचित्र चुने कष्ट हँसे जब पुष्प चुभोये कंटक की बरसात हुई। अंगारों पर लोट-लोट कर संकट लगते छुई-मुई।। अभिलाषा चौहान'सुज्ञ' स्वरचित मौलिक