देख दशा तब काँपी

झंझावात में घिरा जीवन
चिंताओं की वापी।
झूला झूलूँ दुविधाओं में
झूलत-झूलत हाँपी।।

चाँद जलाता सूरज जैसे,
पवन लगाती चाँटे।
फूस झोंपड़ी सा तन सुलगे
अंतस चुभते काँटे।
साया साथ छोड़ के बैठा
भय से नैना ढाँपी।
झूला झूलूँ दुविधाओं में
झूलत-झूलत हाँपी।।


हंसा पिंजर में बंदी है,
तड़प-तड़प रह जाए।
उड़न खटोला कब ये बैठे,
कब पी से मिल पाए।
माया मकड़जाल सी लिपटी,
देख दशा तब काँपी
झूला झूलूँ दुविधाओं में
झूलत-झूलत हाँपी।।


पल में रूप बदलता ये जग,
होती घोर निराशा।
तन ही अपना साथ न देवे,
किससे करना आशा।
दूर-दूर तक धुंध छाई है,
राह न जाए नापी
झूला झूलूँ दुविधाओं में
झूलत-झूलत हाँपी।।


अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक





टिप्पणियाँ

  1. वाह!!!
    लाजवाब नवगीत अद्भुत बिम्ब....
    चाँद जलाता सूरज जैसे,
    पवन लगाती चाँटे।
    फूस झोंपड़ी सा तन सुलगे
    अंतस चुभते काँटे।
    साया साथ छोड़ के बैठा
    भय से नैना ढाँपी।
    झूला झूलूँ दुविधाओं में
    झूलत-झूलत हाँपी।।

    जवाब देंहटाएं
  2. वर्तमान परिपेक्ष्य में रची गई सुन्दर रचना।

    जवाब देंहटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह!सखी बहुत खूबसूरत भावाभिव्यक्ति ।

    जवाब देंहटाएं

एक टिप्पणी भेजें

इस ब्लॉग से लोकप्रिय पोस्ट

जिसे देख छाता उल्लास

सवैया छंद प्रवाह

देखूं आठों याम