ज्येष्ठ धूप में बंजारन
सूखे पनघट कूप बावड़ी
कोसों चलती पनिहारन
रेतीले धोरों में भटके
जल की बूँदों के कारण।
दूर-दूर तक दिखे मरुस्थल
आग उगलती धरती है
दिखे नहीं है ठंड़ी छाया
जो संताप को हरती है
तपिश सूर्य से दग्ध हुई वो
ज्येष्ठ धूप में बंजारन
रेतीले धोरों में भटके
जल की बूँदों के कारण।।
जीवन रक्षा कैसे होगी
प्रश्न सामने विकट खड़ा
धरती का उर भी प्यासा है
जल संकट यम रूप बड़ा
बूँद-बूँद से सिंचित जीवन
मिलें कहीं तो हो पारण
रेतीले धोरों में भटके
जल की बूँदों के कारण।।
श्वेद बिंदु से तन लथपथ है
नयनों में चिंता डोले
खाली घट को लेकर चलती
धीरे-धीरे हौले-हौले
आसमान को तकती आँखें
बदरा बरसे हो वारण
रेतीले धोरों में भटके
जल की बूँदों के कारण।।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
कोसों चलती पनिहारन
रेतीले धोरों में भटके
जल की बूँदों के कारण।
दूर-दूर तक दिखे मरुस्थल
आग उगलती धरती है
दिखे नहीं है ठंड़ी छाया
जो संताप को हरती है
तपिश सूर्य से दग्ध हुई वो
ज्येष्ठ धूप में बंजारन
रेतीले धोरों में भटके
जल की बूँदों के कारण।।
जीवन रक्षा कैसे होगी
प्रश्न सामने विकट खड़ा
धरती का उर भी प्यासा है
जल संकट यम रूप बड़ा
बूँद-बूँद से सिंचित जीवन
मिलें कहीं तो हो पारण
रेतीले धोरों में भटके
जल की बूँदों के कारण।।
श्वेद बिंदु से तन लथपथ है
नयनों में चिंता डोले
खाली घट को लेकर चलती
धीरे-धीरे हौले-हौले
आसमान को तकती आँखें
बदरा बरसे हो वारण
रेतीले धोरों में भटके
जल की बूँदों के कारण।।
अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक
सहृदय आभार आदरणीया 🙏🌹 सादर
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार आदरणीय 🙏🌹 सादर
हटाएंदूर-दूर तक दिखे मरुस्थल
जवाब देंहटाएंआग उगलती धरती है
दिखे नहीं है ठंड़ी छाया
जो संताप को हरती है
तपिश सूर्य से दग्ध हुई वो
ज्येष्ठ धूप में बंजारन
रेतीले धोरों में भटके
जल की बूँदों के कारण।।
वाह!!!
सुन्दर हृदयस्पर्शी बिम्बों से सजा लाजवाब नवगीत।
जीवन रक्षा कैसे होगी
जवाब देंहटाएंप्रश्न सामने विकट खड़ा
धरती का उर भी प्यासा है
जल संकट यम रूप बड़ा
बूँद-बूँद से सिंचित जीवन
मिलें कहीं तो हो पारण... वाह.. अद्भुत लेखन 🌷 🌷
सचमुच, जल के प्रति मनुष्य की लापरवाही ने बहुत विकट प्रश्न खड़ा कर दिया है...
ओ चित्रकार.... पढ़ने के लिए आप आमंत्रित हैं 🙏🙏
सहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
हटाएंवाह क्या बात
जवाब देंहटाएंसहृदय आभार सखी 🌹🌹 सादर
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