पीपल पत्ते पीत हुए

पतझड़ के आने से पहले
पीपल पत्ते पीत हुए
उजड़े-उजड़े इस जीवन के
सब श्रृंगार अतीत हुए।

मकड़ी जाले बुनती घर में
झींगुर राग अलापे हैं
उखड़ी-उखड़ी ये दीवारें
गादुर भी अब व्यापे हैं।
नयन झाँकते चौखट बाहर
सपने सारे शीत हुए।
उजड़े-------------------।।

तिनका-तिनका जोड़-जोड़ कर
सुंदर नीड़ बसाया था
कितनी सुन्दर फुलवारी थी
बसंत झूमता आया था
समय प्रभंजन ऐसा लाया
सुर विहीन सब गीत हुए
उजड़े---------------------।।

उड़े पखेरू पर फैलाकर
नाप रहे अपना रस्ता
भूल गए वे नीड़ पुराना
प्रेम हुआ इतना सस्ता
मौन गूँजते घर आँगन में
कंपित से भयभीत हुए।
उजड़े------------------।।

अभिलाषा चौहान'सुज्ञ'
स्वरचित मौलिक



टिप्पणियाँ

  1. बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-06-2020) को 'बिगड़ गया अनुपात' (चर्चा अंक 3726) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव


    जवाब देंहटाएं
  3. दिलचस्प। मैं आपके ब्लॉग पर फिर से आऊंगा!

    जवाब देंहटाएं
  4. उड़े पखेरू पर फैलाकर
    नाप रहे अपना रस्ता
    भूल गए वे नीड़ पुराना
    प्रेम हुआ इतना सस्ता
    मौन गूँजते घर आँगन में
    कंपित से भयभीत हुए।
    उजड़े------------------।।
    मन को गांव की उन गल‍ियों में ले गईं ये पंक्त‍ियां जहां हमारा बचपन गुजरा... नानी की पथराई आंखें आज भी याद हैं क‍ि जब वो कहती थीं.. इतना बड़ा घर और एकदम सूना...अब यहां कोई नहीं आता...

    जवाब देंहटाएं

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