सांस्कृतिक प्रदूषण

प्रदूषण वाणी का
बढ़ाता द्वेष
जीवन में मचता क्लेश
टूटते रिश्ते-नाते
घुल जाता घृणा का विष
संयम वाणी पर
है अति आवश्यक
ईर्ष्या,निंदा,घृणा की भेंट
जब होता संयम
होता महाभारत
शिष्टता ,शालीनता का होता अंत
बड़े-छोटे का मिटता अंतर
भूल कर सब सीमाएं
रचते महाभारत।
सांस्कृतिक प्रदूषण
से होता संस्कृति का अंत
होता परंपराओं का उल्लंघन
अमर्यादित होता आचरण
आधुनिकता की अंधी दौड़ में
भूल भारतीय संस्कृति की
महानता
मार रहे अपने पैरों पर कुल्हाडी
दो नावों पर हो सवार
करना यात्रा
सदैव होता खतरनाक
विषैले विचार
सदैव उत्पन्न करते
मानसिक प्रदूषण
जिससे होता वैचारिक पतन
जो है मानव संस्कृति के लिए
सबसे घातक
मानव बन रहा मानवता का दुश्मन
पर्यावरण का कर रहा अंत
सत्य को कर रहा अनदेखा
स्वयं को चढ़ा रहा सूली पर।

अभिलाषा चौहान
स्वरचित मौलिक

टिप्पणियाँ

  1. जी नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (02 -06-2019) को "वाकयात कुछ ऐसे " (चर्चा अंक- 3354) पर भी होगी।

    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    आप भी सादर आमंत्रित है
    ....
    अनीता सैनी

    जवाब देंहटाएं
  2. मानव बन रहा मानवता का दुश्मन
    पर्यावरण का कर रहा अंत
    सत्य को कर रहा अनदेखा
    स्वयं को चढ़ा रहा सूली पर।
    सच्ची ,सटीक बात ,बेहतरीन रचना सखी

    जवाब देंहटाएं
  3. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक
    ३ जून २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  4. सदैव होता खतरनाक
    विषैले विचार
    सदैव उत्पन्न करते
    मानसिक प्रदूषण
    जिससे होता वैचारिक पतन।

    बहुत ही सही सही कहा आपने बहन सांस्कृतिक प्रदूषण भी आज वैचारिक वैमनस्यता का सब से बड़ा कारण है
    सकीक सुंदर।

    जवाब देंहटाएं

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