यात्रा भव्यता से दिव्यता तक-४
गतांक से आगे
रात के ग्यारह बज रहे थे पर काशी जागी हुई।उस पावन धरा का अपनापन हमें हमेशा के लिए अपना बना चुका था पर यात्रा अभी जारी थी तो शरीर ही विश्राम की मांग करने लगा था।हम होटल आ गए थे।अगले दिन सुबह साढ़े छह बजे निकलना था।हमने टैक्सी बुक कर ली थी।जो सुबह हमें नंदी चौक से मिलने वाली थी।ई रिक्शा या आटो में भ्रमण की इजाजत शरीर नहीं दे रहा था।नंदी चौक का नाम ऐसे ही नंदी चौक नहीं है, यहां एक स्तंभ के ऊपर नंदी की विशाल प्रतिमा स्थापित है।
नंदी चौक
नंदी का मुख बाबा विश्वनाथ मंदिर की ओर है।जिनकी आंखें हमेशा अपने आराध्य के दर्शनों के लिए लालायित दिखाई देती हैं।सुबह हम सबसे पहले काशी के कोतवाल काल भैरव के दर्शन करने गए।उस दिन बाबा काल भैरव का जन्मदिन था। मार्गों को गुब्बारों से सजाया गया था।ये काशी की गलियां मुझे शिव की जटाओं जैसी लग रहीं थीं। गोल-गोल घुमावदार गलियां जिसमें दो आदमी ही मुश्किल से चल सकते थे। उनमें दर्शनों के लिए लंबी कतारें थीं,बाबा के जन्मदिन के उपलक्ष में प्रसाद स्वरूप गर्मा-गर्म बादाम-केसर युक्त दूध भक्तों को मनुहार कर-करके पिलाया जा रहा था।करीब आधा-पौना घंटे कतारबद्ध चलने के बाद बाबा काल भैरव का भव्य स्वरूप नयनों के समक्ष था।कोतवाल होने का तेज उनके मुख-मंडल पर स्पष्ट विद्यमान था।
बाबा काल भैरव के दर्शन के बाद हम निकल पड़े अपनी आगे की यात्रा पर...नाश्ता नहीं किया था तो टैक्सी वाले भैया हमें काशी की प्रसिद्ध बेड़मी पूरी और सब्जी खिलाने ले गए,साथ में थी जलेबी।उनका स्वाद वास्तव में लाजबाव था।इसके बाद हम पहुंचे संकट मोचन हनुमान मंदिर... यहां भी मोबाइल ले जाना मना था पर हमारे अंतर्मन ने संकट मोचन को अंतर्तम में बसा लिया था।मंदिर के विशाल प्रांगण में प्रसाद की दुकानें थीं। प्रसाद लेकर हमने संकट मोचन के दर्शन किए। मूर्ति अत्यंत भव्य थी।उसकी दिव्यता पलक ही नहीं झपकने दे रही थी। संकटमोचन हनुमान मंदिर के पास ही माता का भी मंदिर था।हमने उसके भी दर्शन किए।इसके बाद हम एक और भव्य मंदिर में पहुंचे।यह मंदिर भी अत्यंत विशाल था। इसमें द्वादश ज्योतिर्लिंग के साथ ही एक सौ आठ शिवलिंग और सभी देवी-देवताओं की मन मोह लेने वाली भव्य और बोलती हुई मूर्तियां स्थापित थीं।साथ ही गौशाला भी थी। मंदिर का स्थापत्य भी अनूठा था और अभी उसका जीर्णोद्धार हुआ था।
आदिशक्ति माता मंदिर
अब हमारा अगला पड़ाव था" काशी हिन्दू विश्वविद्यालय"जिसे "बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय"भी कहते हैं।लगभग अड़तालीस से पचास किलोमीटर के क्षेत्र में विश्वविद्यालय फैला हुआ है। यहां मेडिकल कालेज,अस्पताल,कला,विधि, विज्ञान,वाणिज्य संकाय
खेल मैदान और भी बहुत कुछ है ।यह परिसर हरितिमा से आच्छादित है।इसकी स्थापना पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने की थी।काशी की पहचान का यह भी एक महत्वपूर्ण अंग है। यहां इंजीनियरिंग कालेज भी है।
विश्वविद्यालय परिसर में नवनिर्मित काशी विश्वनाथ का मंदिर है।मंदिर दर्शन के लिए ही पर्यटकों या भक्तों को परिसर में मंदिर तक गाड़ी ले जाने की इजाजत है।यह मंदिर भी अद्भुत और अलौकिक है। इस मंदिर को बिड़ला मंदिर भी कहा जाता है।टैक्सी वाले भैया हमें उस परिसर की विशेषताएं बता रहे थे। उन्होंने हमें बहुत कुछ बताया काशी के बारे में....काशी के महत्व के बारे में....काशी के विकास के बारे में... वर्तमान सरकार की खूबियों के बारे में...इस पौराणिक सनातन और धार्मिक नगरी में थोड़ी-थोड़ी दूर पर मस्जिदें भी स्थापित थीं।यह देखकर मन दुखता है कि जब काशी का उल्लेख हमारे वेद-पुराणों में है तब उसमें कहीं भी ऐसे धर्म-प्रतीकों का उल्लेख नहीं है,ये बाद में जबरन हम पर थोपे गए हैं। हमारे धार्मिक स्थलों की सुंदरता को हानि पहुंचाने वाली मानसिकता ने सनातन से बराबरी करने के लिए इन धर्म प्रतीकों की स्थापना की है।यह दर्द हर सनातनी काशीवासी का है जो उन भैया की वाणी से छलक रहा था।अब हम पहुंच गए थे बाबा विश्वनाथ के इस मंदिर में।बिड़ला मंदिर और विश्वनाथ मंदिर के रूप में यह मंदिर भी अत्यंत भव्य था।
न्यू काशी विश्वनाथ मंदिर
महामना पंडित मदनमोहन मालवीय की प्रतिमा
इस भव्य स्थान के दर्शन करने के बाद हमारा अगला पड़ाव था "सारनाथ "लेकिन इससे पहले रास्ते में दो और मंदिर भी आने वाले थे।दिन के दो बज रहे थे ।खाने का समय हो गया था तो हम लोग खाना खाने के लिए रुक गए थे।समय कुछ जल्दी ही भाग रहा था ,मन कह रहा था कि काशी को जानना है तो यहां अधिक समय लेकर आना चाहिए ।
क्रमशः
अभिलाषा चौहान











बहुत ही सुंदर और विस्तृत यात्रा वृतांत सखी ! हार्दिक शुभकामनाये
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