शिव साधना
"दोहा"
ज्योतिर्लिंग अनूप है,पूजो आठों याम।
बेलपत्र चंदन चढ़े,शिव भक्ति के धाम।
लिंग रूप भगवान का,शिव का ही है रूप।
तीन लोक में श्रेष्ठ है, अद्भुत अतुल अनूप।
शिव ही जीवन सार हैं,इस जग के आधार।
उनके पूजन-ध्यान से,होता बेड़ापार।।
मन से कर आराधना,मोह-लोभ को त्याग।
निर्मल तन-मन हो तभी,जाग उठेंगे भाग।।
सावन में अभिषेक से,मिलते पुण्य अनन्य ।
त्रिपुरारी करते कृपा,जीवन होता धन्य।।
महादेव मुझको मिले,करते रहें प्रयास।
पूर्ण मनोरथ हो सभी,वे जीवन की आस।
मोक्ष मिले बंधन कटे,दूर हटे संताप।
भोले के आशीष से,धुलते सारे पाप।।
शिव शंकर भगवान का,करले नित ही ध्यान।
उनके रुप अनूप में,तीन लोक का ज्ञान।।
डमरू त्रिशूल संग हैं,और जटा में गंग।
भालचंद्र गल सर्प है,गौरा माता संग।।
भोले नाथ करिए कृपा,विनय करें यह दास।
दूर हटे अज्ञानता,मिले शरण यह आस।
सोरठा
देख सती मृत देह,उमड़ा क्रोध अपार है।
भस्म हुआ तब नेह, ताण्डव शिव शंकर करें।।
शिव ताण्डव को देख,देव सभी घबरा गए।
क्रोध खींचता रेख,भोले कैसे शांत हों।।
चंद्रचूड़ ओंकार,विनती करते आपसे।
जग का ये संहार,भगवन अब तो रोकिए।
शिव ताण्डव यह मंत्र,इसका निशदिन जाप कर।
टूटेंगे सब तंत्र,शंकर की होगी कृपा।।
अभिलाषा चौहान
सुंदर
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