मन की बात









चोर-चोर का शोर मचा है,

पकड़ा कैसे जाए चोर।

किसकी बातों को सच माने,

दिखे न इसका कोई छोर।


जहर घोलते जन-मानस में ,

इनके देखो ओछे बोल।

आंखों पर बाँधी पट्टी है ,

सच का कोई रहा न मोल।


जाति धर्म में देश बांटते,

लगती प्यारी इनको फूट।

वोट नोट बस इनको प्यारे,

जनता को ये लेते लूट।


वाणी की मर्यादा तोड़ें ,

रखते नहीं किसी का मान।

षड़यंत्रों का जाल बिछाएँ,

और घटाएँ अपना मान।


करें अंधभक्त वाहवाही,

जिसको माने अपनी जीत।

संविधान की खाते कसमें,

लेकिन नहीं किसी के मीत।


जोर लगाएं एड़ी चोटी,

गले कहाँ अब इनकी दाल।

हुए खोखले दावे इनके,

समझे जनता इनकी चाल।


देश भक्त मानव वो सच्चा,

जिनके लिए देश अनमोल।

झूठ बोल कर आग लगाते,

इनके देश विरोधी बोल।


देश जले दंगों में जब भी,

इनकी पूरी होती आस।

अपनी रोटी सेंक रहे हैं ,

भारत के दुश्मन ये खास।


सत्ता पाने की चाहत में ,

शत्रु देश ही इनके खास।

प्रगति देश की भाती कब है,

देश लूट की रखते आस।


भारत माता के टुकड़े हों,

इनकी सबसे यही पुकार ।

अंधे अंधभक्त और चमचे,

इसे मानते हैं अधिकार।


सोच-समझकर लेना निर्णय, 

अगर देश की है परवाह।

हाथ मलोगे गलती करके,

रह जाओगे भरते आह।


अभिलाषा चौहान 












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