दोहावली








भक्ति

1.

द्वार सुदामा हैं खड़े,सुन दौड़े रणछोड़।

आँसू से पग धो रहे,रीति नीति सब तोड़।।

2.

मन मंदिर में है बसे, मनमोहन घनश्याम।

द्वार खुले रखिए सदा,भजिए उनका नाम।

3.

कपट किवाड़ी है लगी,लोभ चढ़े सिर माथ।

क्रोधी कामी जग कहे,संगी छोड़े साथ।।

4.

ज्ञान द्वार को खोलिए,चलिए सच्ची राह।

गुरुवर के आशीष से,पूरी होती चाह।।

5.

मन में कान्हा बस रहे,देह उसी का द्वार।

तन-मन से सेवा करो,वही लगाए पार।।

6.

लिए कमंडल चल पड़े, आत्मज्ञान की चाह।

संत समागम सर्वदा,मोक्ष मिलन की राह।

7.

भौतिकता के मध्य में,त्यागे पंच विकार।

उसे तपस्वी मानिए,जाने जीवन सार।

8.

आध्यात्मिक प्रतिबिम्ब है,तिलक लगे जो भाल।

सदा सनातन चेतना,बने हमारी ढाल।

9.

साध्य साधना से मिले,रखिए संयम चाह।

केवल कोरी कल्पना,दुर्गम करती राह।

10.

भक्ति भाव निर्मल रखो, त्यागो फल की आस।

प्रेम करो भगवान से,बनकर उनके दास।

11.

करी सगाई कृष्ण से,प्रीत बढ़ी पुरजोर।

चाह बढ़ी चिंता घटी,हृदय बसे चितचोर।

12.

भोले की बारात में,यक्ष प्रेत,गंधर्व।

दक्षराज क्रोधित हुए,देव अचंभित सर्व।

13

सिय विवाह की शुभ घड़ी,हर्षित पुर के लोग।

रामचंद्र वर रूप में,अद्भुत है संयोग।

14.

समय विदाई का हुआ, झर-झर झरते नैन।

सिय राम अनुगामिनी,मातु-पिता बैचेन।


कहाँ गए वो लोग

15.

थे आदर्श सबके लिए, कहाँ गए वो लोग।

नैतिकता मिट्टी मिली,स्वार्थ बना संयोग।

16.

करते जिनसे नेह थे,उनसे हुआ वियोग।

मन भटके तरसे नयन,कहाँ गए वो लोग।


तितली

17.

अनुपम अद्भत तितलियाँ,उड़ती दिखतीं बाग।

अनुपम रंगों से सजी,उर में उपजा राग।

18.

पुष्प-पुष्प पर बैठतीं,सुंदर तितली अनेक।

मारें या पकड़े नहीं, खोकर कभी विवेक।।


नेता

19.

नेता सुनते ही नहीं,अब जनता की बात।

झूठे वादों की मिली,बस हमको सौगात।

20.

झूठे वादों से कभी,होता नहीं विकास।

नेता हित कब सोचते,देते झूठी आस।

21.

सब नेता हैं एक से,सबके झूठे बोल।

काम-काज करते नहीं,दिखे ढोल में पोल।

22.

नेताओं के झूठ से,बिगड़े हैं हालात।

धर्म जाति मुद्दा बनें,सुने कहाँ कब बात।

23.

झूठे वादे वे करें,बोलें बिगड़े बोल।

जनता पूछे प्रश्न जब,नेता होते गोल।

24.

भेद-भाव जो कर रहे,उनको बैरी मान।

फूट देश में डालते,बनते चतुर सुजान।

25.

भेद-भाव जो कर रहे,नीति-नियम रख ताक।

रचते नित षड़यंत्र हैं,और जमाते धाक।

26.

भेद-भाव जो कर रहे,विष उगले दिन-रात।

ऐसे जन सबसे बुरे,खाते हैं फिर मात।

आजादी

27.

आजादी इस देश की, वीरों की सौगात।

काल खण्ड बलिदान सब,भूले हम हर बात।

28.

देशप्रेम सर्वोच्च है,कौन रखे यह याद।

आजादी के मायने,भूल करें बर्बाद।

29.

आजादी कैसे मिली,भूल गए हर बात।

धर्म-जाति में हैं फँसे,स्वार्थ बसा है गात।

30.

तन-मन न्योछावर किए,भारत माँ के लाल।

आजादी वो दे गए,रखें इसे सम्हाल।।


विद्यालय 

31.

विद्यालय हैं ज्ञान के,अतिउत्तम आगार।

शिक्षण से समृद्ध करें,उचित मिलें संस्कार।।

32.

विद्यालय जाएँ सभी,आओ करें प्रयत्न।

शिक्षा से समृद्ध बनें,शाला अनुपम रत्न।।

33.

शाला की सुविधा मिले,सबको एक समान।

कर्णधार शिक्षित बनें,होगा तभी विहान।

34.

बस्ते का हो बोझ कम,बदले शिक्षण तंत्र।

खेलकूद तकनीक हो,कौशल विकास मंत्र।

35.

पोथी से साक्षर बने,नहीं उचित आचार।

नैतिकता संस्कार बिन,कैसे हो उद्धार।

36.

कलम तेज तलवार से,करती हिय पर वार।

समझे इसका मूल्य जो,रखता उच्च विचार।

37.

बोझ पढ़ाई बन रही, प्रतिस्पर्धा है जोर।

बच्चे बचपन खो रहे,टूटे जीवन डोर।


शिक्षक,गुरू

38.

आत्म शुद्धि कल्याण का,गुरुवर देते ज्ञान।

बालक सब साक्षर बनें,इसका रखते ध्यान।

39.

मन की गाँठे खोलते,गुरुवर सदा महान।

शिक्षक शिक्षा से सदा,नव पीढ़ी उत्थान।

40

शिक्षक भी संज्ञान लें,उचित रखें आचार।

नव पीढ़ी निर्माण का,उनपर ही है भार।

41.

शिक्षक भी संज्ञान लें,रखकर उच्च विचार।

शिक्षा से संस्कार का, उन्हें मिला अधिकार।

42.

शिक्षक भी संज्ञान लें, पढ़े-लिखे सब छात्र।

क्या शिक्षा व्यवसाय है, हर जन इसका पात्र।

43.

शिक्षक भी संज्ञान लें,यही समय की माँग।

नवाचार कौशल बनें,शिक्षण लगे ना स्वाँग।


हिंदी भाषा 

44.

हिंदी भाषा देश की,पाए निज सम्मान।

भेद-भाव जो कर रहे,बात न उनकी मान।

45.

हिंदी जन-मन सोहती,मधुर सरस संवाद।

श्रेष्ठ काव्य शब्दावली,इसका मिले प्रसाद।

46.

भाषा के उत्थान का,करते रहें प्रयास।

बने राष्ट्र पहचान ये,ऐसा हो उल्लास।

47.

हिंदी भाषा देश की,पाए निज सम्मान।

भेद-भाव जो कर रहे,बात न उनकी मान।


साहित्य 

48.

दर्पण सदा समाज का,होता है साहित्य।

देता सबको प्रेरणा,अनुपम है लालित्य।

49.

गणना मात्रा वर्ण की,करें बने तब छंद।

शब्द अर्थ लय बद्धता,पद यति गति आनंद।

50.

चार चरण दो पंक्ति का,दोहा मात्रिक छंद।

तेरह ग्यारह सदा यति, रसाभास सानंद।

51

हृदय तार झंकृत करें,सरस मधुर रस गीत।

लय प्रवाह सुर ताल से,बनते सच्चे मीत।

52

भक्ति भाव से कर भजन, प्रभु में हो जा लीन।

मिले प्रीत भगवान की,मिटें भाव सब दीन।

53

कविता कवि की कल्पना, हृदय भाव उद्गार।

जगती है नवचेतना,बहती रस की धार।


विदाई

54.

छूटा बाबुल आँगना,मिला पिया का साथ।

दो कुल के उत्थान की,डोर वधू के हाथ।


अभिलाषा चौहान 










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