विनय-पत्रिका








किशन कन्हैया बंशी वाले ।

भक्तों के तुम हो रखवाले।

हे गोवर्धन हे गिरिधारी।

अब तो सुन लो विनय हमारी।


नंद यशोदा के सुत प्यारे।

लीलाधर तुम कितने न्यारे।

राधा के उर तुम्हीं बसे थे।

प्रेम बंध में तुम्हीं कसे थे।


तुमने कितने दानव मारे।

कितने पापी तुमने तारे।

अर्जुन के तुम बने सारथी।

ये कौरव की बड़ी हार थी।


हे गोविंदा हे गोपाला।

हम हैं पापी मन है काला।

अब उद्धार करो जगदीश्वर ।

हे करुणाकर हे विश्वेश्वर।


गोकुल में तुम रास रचाए।

मथुरा शासन तुम्हें सुहाए।

बने द्वारकाधीश कृपाला।

सुंदर अद्भुत रूप विशाला।


मित्र सुदामा के पग धोए।

दीन दशा देख श्याम रोए।

बिन माँगे ही सब दे डाला।

ऐसे हो तुम दीन दयाला।


पांचाली पर विपदा आई।

बात तुम्हें यह नहीं सुहाई।

आकर तुमने चीर बढ़ाया।

अधिकारों का पाठ पढ़ाया।


हे गोवर्धन हे गिरिधारी ।

हे मधुवन के रासबिहारी ।

अंतर्यामी हे प्रभु मेरे।

करो दूर अब सभी अँधेरे


अधर्म राज और पापी राजा।

दुराचार का बजता बाजा।

कुछ तो कृपा करो अब मोहन।

पाप राज का कर दो दोहन।


तुमने गीता ज्ञान दिया था।

अर्जुन ने तब युद्ध किया था।

दुर्बल कायर हम बन बैठे।

बात कोई मन में न पैठे।


आकर अलख जगाओ फिर से।

बोध ज्ञान हो जग को फिर से।

भाव-भक्ति हमको कब आती।

लिखते हैं बस तुमको पाती।


माधव मोहन कुंजबिहारी।

लीला अपरम्पार तुम्हारी।

कृष्ण कन्हैया वंशी वाले।

संकट-पीड़ा हरने वाले।


विनय पत्रिका प्रभुवर मेरी।

आने में मत करना देरी।

घड़ी प्रतीक्षा की अब मुश्किल।

राह निहारे हे प्रभु पल-पल।


अभिलाषा चौहान 














तुमने गीता ज्ञान दिया था।

अधर्म का संहार किया था।

बढ़े पाप छाया अंधियारा।

भक्त जनों का कौन सहारा।

टिप्पणियाँ

  1. हे गोवर्धन हे गिरधारी मन में बसो कृष्ण बिहारी ! बहुत सुन्दर भक्तिभाव में डूबा विनय ।

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